नई दिल्ली: अपनी मर्जी से प्रेम विवाह करने वालों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने कहा है कि माता पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी करने वाले प्रेमी जोड़े पुलिस सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते। यानी की जब तक प्रेमी जोड़े को जीवन और स्वतंत्रता का असल खतरा नहीं होता तब तक वो पुलिस सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते। केवल अपनी मर्जी से शादी करने लेने भर से ही किसी को भी सुरक्षा की मांग का अधिकार नहीं है जब तक कि कोई वाजिब वजह न हो।
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एक प्रेमी जोड़े की याचिका पर सुनवाई करने के बाद फैसला सुनाते हुए जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने कहा कि जो भी प्रेमी जोड़ा अपनी मर्जी से शादी करता है उसे पुलिस की सुरक्षा का अधिकार नहीं है। हालांकि सुरक्षा जोड़े को तभी दी जा सकती है जब उनके जीवन या उनकी स्वतंत्रता को किसी से खतरा हो। उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालत किसी भी कपल को सुरक्षा मुहैया कर सकती है लेकिन अगर उनके सामने किसी तरह का खतरा हो। हालांकि ऐसे में उन्हें एक-दूसरे का सपोर्ट करना चाहिए और समाज का सामना करना सीखना चाहिए।
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प्रेमी जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण है हाईकोर्ट का फैसला
प्रेमी जोड़े की याचिका पर कोर्ट ने दस्तावेजों और बयानों के जांच में पाया कि उन दोनों को कोई गंभीर खतरा नहीं है। ऐसे में कोर्ट ने याचिका को समाप्त कर दिया। दरअसल याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में ये दावा किया था कि उनके परिवार वाले प्रेमी जोड़े के शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं। कोर्ट का ये फैसला ऐसे प्रेमी जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण आदेश है, जो माता-पिता की सहमति के बिना अपनी मर्जी से विवाह कर लेते हैं, कोर्ट ने अपने आदेश में ये भी कहा कि याचिकाकर्ता के पास विपक्षी लोगों द्वारा उन पर किए गए शारीरिक या मानसिक हमले का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
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वहीं याचिकों के विपक्षियों के किसी ऐसे आचरण को लेकर कोई पुलिस एफआईआर में जानकारी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि याचिका कर्ताओं ने चित्रकूट के एसपी को प्रत्यावेदन दिया था कि पुलिस वास्तविक स्थिति के हिसाब से कानून के मुताबिक जरूरी कदम उठाए।
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