प्रो. राहुल सिंह की कलम से
महाकुंभ मेले का 45 दिन बाद महाशिवरात्रि स्नान के बाद समापन हो गया। सरकार की तरफ से आंकड़े दिए जा रहे हैं कि 13 जनवरी से 26 फरवरी तक 66 करोड़ 30 लाख से आधिक लोगों ने स्नान किया। एक तरफ तो पूंजीपतियों के नुमाइंदे यह बोल रहे हैं कि देश की तरक्की के लिए सप्ताह में ‘70 घंटे और 90 घंटे’ काम करने की जरूरत है, दूसरी तरफ देश की करीब आधी जनसंख्या के पास इतना समय है कि वह कुंभ मेले में स्नान के लिए जाती है। यह भारत के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।
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हम देख रहे हैं कि कई युवा-युवतियां जो कि आईआईटी किये हुए है, वो भी साधु बनने आ रहे हैं और साधु लोग सांसद, विधायक, मंत्री बन रहे हैं। आईआईटी छात्र को उनके घर वाले और कई साधु संत भी विक्षिप्त बता रहे हैं। अगर इस देश का युवा वर्ग पढ़-लिख कर विक्षिप्त की हालत में जी रहा है, तो उस देश का भविष्य क्या होगा! प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नााथ यह कहते हुए कि ‘‘जो दुर्भावना से जायेंगे उसकी दुर्गति तय है,’’ भक्तों पर ही सवाल खड़े कर देते हैं। प्रशासन भीड़ को सम्हालने के लिए स्टेशन बंद कर देती है, कई किलोमीटर दूर गाड़ियों की आवाजाही रोक दी जाती है। उससे परेशान श्रद्धालुओं के नियति पर ही प्रदेश के मुख्यमंत्री सवाल खड़े करते हैं।
मुख्यमंत्री के अनुसर भगदड़ में मरे या घायल लोगों के लिए वह स्वयं के दोषी हैं, क्योंकि उनकी भावना अच्छी नहीं थी, जिसके कारण वे भगदड़ में दब गये। भगदड़ में मरने वालों की संख्या बताने में प्रशासन को घंटों लग गये, जबकि करोड़ों की भीड़ को कुछ ही घंटे में प्रशासन बता देती है। योगी की बातों को आगे बढ़ाया जाए तो दिल्ली के प्लेटफार्म पर मरने वाले लोगों की नीयत और खराब होगी, जो कि संगम तक नहीं पहुंच सके। उस छात्र को क्या कहा जाए जो परीक्षा देने के लिए बंगलौर जा रहा था और दिल्ली के भगदड़ में उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसके नीयत में खोट है या उस सरकार की नियत खोटी है, जो भगदड़ का वीडियो और फोटो सोशल साईट से हटवा रही है? उस सरकार-प्रशासन को किया कहा जाये, जो महाकुंभ में अमृत स्नान की घोषणा कर देती है और पर्याप्त व्यवस्था नहीं कर पाती है और ट्रेनें कई घंटे देर से चलाई जाती है।
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17 फरवरी को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को रिपोर्ट सौंप कर बताया कि पानी में फेकल कोलीफॉर्म (मल-मूत्र से उपजी गंदगी) की मात्रा 13 गुना ज्यादा है, जिससे महाकुंभ का पानी नहाने योग्य और आचमन करने लायक नहीं है। मुख्यमंत्री योगी ने रिपोर्ट को खंडन करते हुए संगम के पानी को पीने योग्य बताया। योगी के इस बयान पर सिंगर और संगीतकार विशाल ददलानी ने इंस्टाग्राम पर योगी जी को चुनौती देते हुए लिखा कि आप कैमरे के सामने एक घूंट पानी पीकर दिखा दें। 29 जनवरी की रात विपक्षी दलों ने भगदड़ में मरने वालों की संख्या को भी छुपाने का आरोप सरकार पर लगाया। इसके जवाब में विधान सभा में बोलते हुए योगी ने कहा कि ‘‘समाजवादी और वामपंथियों की सनतान की सुंदरता कैसे नजर आएगी।’’
कुंभ में भगदड़ और प्रशासन
बीबीसी संवाददाता विकास पांडे ने बताया कि ‘‘मैं मेले के मुख्य एंट्री गेट पर हूँ, जहां से अब भी लाखों लोगों का कुंभ मेले में जाना जारी है। इसी दौरान कुंभ क्षेत्र से एम्बुलेंस का जाना जारी है। प्रशासन ने घायलों और मृतकों का कोई आंकड़ा जारी नहीं किया है।’’ सुमेधा पाल से बातचीत में एक पीड़ित महिला ने बताया कि भगदड़ में वो गिर गई थीं और उनके नीचे तीन लोग दबे थे, जिनकी मौत हुई है। एक श्रद्धालु ने विकास पांडे से बात की, जिन्होंने बताया कि सुबह आठ बजे से वो चले जा रहे हैं और उनको पुलिसकर्मी सही पता नहीं बता रहे हैं। स्टेशन से लेकर अब तक ग़लत रास्ते बताए जा रहे हैं। बीबीसी से आएशा मिश्रा नामक एक श्रद्धालु ने बुधवार तड़के गंगा घाट का हाल बताते हुए कहा कि ’एक ही रास्ते से लोग आ और जा रहे हैं, इस दौरान धक्का-मुक्की की वजह से लोग गिर जा रहे हैं। पुलिस या तो घाट पर है या द्वार पर है, बीच में कहीं पुलिस नहीं है।
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वैभव कृष्ण (डीआईजी, महाकुंभ नगर मेला क्षेत्र) ने बुधवार शाम को पत्रकारों को बताया कि संगम नोज घाट पर मची भगदड़ में 30 लोगों की मौत हुई है, जिसमें से 25 की शिनाख्त कर ली गई है। उन्होंने बताया कि 60 लोग घायल हुए हैं, जिनका अस्पतालों में उपचार किया जा रहा है। बीबीसी ने लिखा है कि चश्मदीदों की मानें तो और दो जगहों पर ऐसे हालात बने. इसमें लोगों की जान भी गई। प्रशासन का कहना है कि 29 जनवरी मौनी अमावस्या के दिन संगम नोज़ के अलावा जिन दूसरी जगहों पर हादसे और मौतें होने के दावे किये जा रहे हैं, उनकी पुष्टि और जाँच की जा रही है। अर्पित महाराज बताते हैं, “लोग प्यास के मारे तड़प रहे थे। पानी पिला दो, एक घूँट पानी दे दो। चारों तरफ़ से लोग आ गए। इधर झूँसी से रास्ता उतर रहा है, वहाँ से लोग आ गए। उधर शास्त्री पुल से उतर कर लोग आ गए, इधर पीछे से यहाँ लोग आ गए, एकदम कसाकसी हो गई“। दास धर्म शिविर को जब बेहाल भीड़ के लिए खोला गया तो कुछ मिनट में ही कई हज़ार लोग इसमें घुस गए।
अर्पित महाराज कहते हैं, “एक महिला ने अपना बच्चा फेंकते हुए कहा- गुरुजी, मेरे बच्चे को बचा लीजिए। उन मुश्किल हालात में हमने सैकड़ों लोगों की मदद की“। दास शिविर में सेवा कर रहे अशोक त्यागी कहते हैं, “खुले आसमान के नीचे साँस न ले पाएँ, यह पहली बार देखा। लोगों ने जूते, चप्पल, बैग, जिसका जो सामान था, छोड़ गए। जान बचाना मुश्किल हो रहा था, लोग पानी के लिए तड़प रहे थे।“ सेक्टर-21 का कचरा ट्रांसफ़र स्टेशन है, यहां अभी कचरे में आए जूते-चप्पलों, कपड़ों से भरा-पड़ा है। शिवनाथ कचरा ले जाने वाला ट्रक चलाते हैं। 29 जनवरी की सुबह का मंज़र याद करते हुए शिवनाथ बताते हैं, “हालात बहुत ख़राब थे, ऐसा लगा था कि जो लेटे हुए थे, वे पूरी तरह से ख़त्म हो गए हैं। जो परिवार यहाँ थे, वह बिलख-बिलख कर रो रहे थे। कोई कह रहा था, यहाँ मेरा चाचा था, यहाँ मेरे माँ-बाप थे, यहाँ मेरी औरत थी। यहाँ मेरा भाई था, कोई नहीं मिला सर’’। कचरा गाड़ी चलाने वाले चंद्रभान ने कचरे में एक शव ख़ुद देखने का दावा करते हुए बीबीसी हिंदी से कहा, “बॉडी… मैं इस चौराहे (उल्टा किला चौक) पर देखा, बारह बजे, वहाँ पर एक बहुत बुज़ुर्ग का शव देखा था“।
चंद्रभान बताते हैं कि वे अगले तीन दिनों तक सिर्फ़ भीड़ में लोगों का छूट गया सामान ही कचरे में ढोते रहे। आशुतोष अपनी ताई का शव उठाने अपने दोस्तों के साथ वहाँ पहुँचे थे। उन्होंने बताया, “वहाँ कोई सरकारी मदद नहीं पहुँची। न कोई एंबुलेंस न और कुछ।’’ उनका सवाल है कि अगर मेडिकल की इतनी सुविधा थी, तो वह पहुँची क्यों नहीं? गणेश मिश्र दावा करते हैं कि एक महिला पुलिसकर्मी बार-बार उच्च अधिकारियों और कंट्रोल रूम को फ़ोन करके बता रही थी कि यहाँ स्थिति विकट हो रही है। उधर से न कोई जवाब आया और न कोई मदद। 15 फरवरी की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 18 लोगों की मौत हो गई। इनमें से कई लोगों का रात में ही पोस्टमार्टम करा दिया गया और अस्पतालों में जाना मीडियाकर्मी को वर्जित कर दिया गया। गिरधारी का कहना है, “हम दोनों पटना से पहले आनंद विहार ट्रेन से आए फिर पानीपत जाने के लिए नई दिल्ली से ट्रेन पकड़ रहे थे, लेकिन प्लेटफ़ॉर्म 14 पर भगदड़ मचने से मामी की मौत हो गई।“
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गिरधारी ने बताया, “प्लेटफॉर्म में जाने के लिए जैसे ही स्टेशन में आए त़ो वहाँ भारी भीड़ देखी। सीढ़ी में धक्का-मुक्की की वजह से हम अलग हो गए। मैं थोड़ी देर बाद उनको देखने गया तो उधर दो, तीन लोगों के बचाओ-बचाओ की आवाज आ रही थी। मैंने चादर से मामी को पहचाना, जैसे ही चादर हटाई तो हल्की सांस चल रही थी।“ उमेश अपनी आंखों-देखी बताते हैं, “मेरे सामने पहले से कई लोगों की बॉडी गिरी हुई थी. उसके बाद वो लोग टकराए हैं, उनके ऊपर से लोग जाने लगे हैं।“ उन्होंने बताया, “उस समय लोगों (बॉडी) को जीने के सामने ही लगा रखा था. उस समय वहां पर न कोई मीडिया थी और न कोई प्रशासन था।“ मदद को लेकर उमेश कहते हैं, “मदद तो कुछ नहीं मिली. बाद में बहुत देर हो गई थी। मैंने कई पुलिस वाले, आरपीएफ़ वालों को कहा लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था।“ मैं साल 1981 से कुली का काम कर रहा हूं, मैंने इतनी भीड़ कभी नहीं देखी।“ दूसरे कुली का कहना है कि “हमने 14 और 15 नंबर प्लेटफॉर्म से खुद लाशों को उठा-उठाकर एंबुलेंस में भरा, उन्हें अस्पताल लेकर गए। बच्चे, महिलाएं आदमी, सब भीड़ में दब गए, घायल हो गए. सांस लेने की जगह नहीं मिली।“
एक अन्य कुली ने हादसे के बारे में बताया कि “हम लोग स्टेशन के बाहर काम कर रहे थे, स्टेशन के भीतर से तेज़ आवाज़ें आने लगीं।“ “हम लोग भागकर भीतर गए तो देखा कि लोग इधर-उधर भाग रहे थे। हमने कई बच्चों को देखा जो दबे हुए थे. हमने बच्चों को उठा-उठाकर बाहर निकाला. कई लोग बेहोश हो गए थे।’’ “हमारे पास हाथ गाड़ी होती है, उसी में लोगों को लाद-लादकर हम बाहर लेकर आ रहे थे और एंबुलेंस तक पहुंचा रहे थे।“ रेल मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (टिवट्र) को पत्र लिखा है. इस पत्र में रेल मंत्रालय ने एक्स से 15 फरवरी को दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ से जुड़े सभी वीडियो और फोटो को अपने प्लेटफॉर्म से हटाने के लिए कहा है। इसके पीछे मंत्रालय ने “एथिकल नॉर्म्स“ का हवाला दिया है!
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पैसा का धंधा
आज तक न्यूज चैनल की भाषा में कहा जाए तो ‘‘एक तरफ करोड़ों लोग अपने पाप धोने और प्रायश्चित करने के लिए कुंभ में पहुंचे और तो दूसरी तरफ कुंभ में ही कुछ लोग अपने पाप की दुकान चला रहे थे। ये लोग कुंभ में स्नान करने पहुंची हर उम्र की महिलाओं और लड़कियों के आपत्तिजनक वीडियो बना रहे थे। डुबकी लगाने आने वाली औरतों, लड़कियों और बच्चियों की डुबकी लगाते वक्त उनके भींगे और गीले कपड़ों के साथ चोरी छुपे उनकी तस्वीरें और वीडियो बनाये गये। वीडियो और तस्वीरें उतारने वाले तो खैर गिनती के होंगे, लेकिन अफसोस की बात ये है कि इनके खरीददार हजारों-लाखों में हैं। इस वीडियो को देखने के लिए 90 रुपए से लेकर 1,800 रूपये तक खर्च कर रहे हैं।’’ महाकुंभ में महिला स्नानार्थियों के कथित आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट करने के लिए विभिन्न सोशल मीडिया खातों के खिलाफ 17 एफआईआर दर्ज की गई हैं। तीन लोगों – चंद्र प्रकाश, प्रज्वल तेली और प्रजा पाटिल को गिरफ्तार किया गया है।
महाकुंभ शुरू होने से पहले प्रयागराज और श्रावस्ती में नकली नोटों के गिरोह पकड़े गए थे। इन नकली नोटों को महाकुंभ में खपाने की तैयारी थी। कोलकाता से नकली रुद्राक्ष लाए गए, तो मुंबई के मार्केट से नामी कंपनियों के बैग, पर्स लाकर बेचे गए। मेले में मिठाई की 7,000 से ज्यादा दुकानें सजीं, इसमें नकली खोया (मावा) सप्लाई हुआ। होली पर जांच करने निकलने वाली टीमें महाकुंभ के बाजार में नजर नहीं आईं। महाकुंभ में बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान के बाद भंडारे और प्रसाद के लिए शुद्ध घी और दूध सामग्री खरीदते हैं, लेकिन यहां नकली दूध का धंधा बड़े स्तर पर चला। एक दुकानदार से बातचीत में पता चला कि ब्रांडेड देसी घी के नाम पर नकली पैकेट बेचे जा रहे हैं। इनमें वनस्पति घी या सस्ता तेल मिलाकर पैकिंग की जाती है।
संगम में पूजा-पाठ के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में रुद्राक्ष और चंदन खरीदते हैं। इसमें भी नकली माल बिका। हमने खुद 500 रुपए में एक दुकानदार से ’प्रामाणिक’ रुद्राक्ष खरीदा। जब इसे एक्सपर्ट को दिखाया तो पता चला कि यह प्लास्टिक का बना था, ऊपर से हल्की-सी पॉलिश कर दी गई थी। इसी तरह चंदन की लकड़ी के नाम पर पीले रंग से रंगी हुई आम की लकड़ी बिकी। एक स्थानीय दुकानदार ने कबूल किया कि असली चंदन की खुशबू लाने के लिए कई बार नकली एसेंस का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह महाकुंभ में आने वाले 10 में से 9 व्यक्ति फ्लाइट के लिए महंगे टिकट लिए, जिसके लिए 300 प्रतिशत तक अधिक कीमत चुकानी पड़ी। प्रयागराज जाने के लिए लोगों ने 50 हजार तक में टिकट खरीदें हैं। होटल और नाव किराये में तीन से चार गुना अधिक पैसा चुकाना पड़ा। प्रयागराज में सामान्य दिनों में होटल के जो रूम 2,500 से 3,000 रुपये तक मिल जाते हैं, वह 29 जनवरी को 22 हजार रुपये में मिला। लक्जरी कॉटेज में तीन रात रूकने और खाने की पैकेज 2.40 लाख रुपये था। यूपी टूरिज्म द्वारा निर्मित डोम सिटी में एक रात रूकने का किराया 91 हजार रुपये था इसके अलावा खाने-पीने का खर्च है।
कुंभ मेले का एक राजनीतिक दांव-पेंच भी है। यही कारण है कि 29 जनवरी के भगदड़ के बाद वीआईपी मुवमेंट पर रोक लगाने के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने 5 फरवरी को संगम में जाकर स्नान किया। कानून के रखवाले खुद ही राजनीतिक लाभ लेने के लिए कानून को तोड़ते रहते हैं। इस राजनीतिक शास्त्र को आरएसएस अच्छा से समझता है और उसको अच्छी तरह से इस्तेमाल करता है। जब जनता महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त है तो उसके आस्था के साथ खिलवाड़ करके, उसको उस संगम में डुबकी लगवाई गई, जिसका पानी नहाने योग्य नहीं है। इसके बावजूद श्रद्धालुओं को गन्दे और हानिकारक पानी में लोगों को स्नान करवाने के लिए झूठ बोला गया। जिस देश में युवाओं को रोजगार चाहिए वो वहां पर महिलाओं के अश्लील फोटोग्राफी कर पैसा कमाने के रास्ते तलाश रहे हैं। जहां भारत की संस्कृति में माना जाता है कि तीर्थ धाम की अवस्था वृद्धावस्था होती है, वहीं पर देखा गया कि इस महाकुंभ में युवाओं और युवतियों की संख्या काफी रहीं।
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महाकुंभ खत्म होते ही 2027 में महाराष्ट्र के नासिक में लगने वाले कुंभ की प्रचार और तैयारी होने लगी। 26 फरवरी, 2025 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अधिकारियों की बैठके हुई। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री गिरीश महाजन ने कहा कि विधानसभा के बजट सत्र में इस संबंध में विधेयक लाया जाएगा। महाजन ने कहा कि मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणावीस ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कुंभ के आयोजन के लिए पैसे की कोई कमी नहीं रहेगी। अच्छा कुंभ नासिक की धरती पर होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने अफसरों से कहा है कि कुंभ के लिए बेहतर इंतजाम हो। जिस तरह कुंभ की व्यवस्था के लिए सरकार तत्पर है, अगर उसी तरह शिक्षा, स्वास्थ्य, किसानों के लिए तत्त्पर होती तो महाराष्ट्र में किसानों को आत्महत्या नहीं करने पड़ते। युवाओं को बरगलाने के लिए इस तरह के आयोजनों को प्रमुखता दी जा रही है, ताकि वह रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की बात नहीं करें।
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