प्रयागराज: महाकुंभ में धर्म संसद चल रही है। इसमें शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- धर्म की शिक्षा हमारे बच्चों का मौलिक अधिकार है। आवश्यकता हो तो संविधान में संशोधन करें। उन्होंने कहा- धर्म शिक्षा हमारे जीवन का अनिवार्य अंग होती थी। मगर आजादी मिलने के बाद संविधान की धारा-30 से देश में बदलाव आया। अल्पसंख्यकों को धार्मिक आधार पर शिक्षण संस्थान बनाने और चलाने का अधिकार दिया। मगर हम बहुसंख्यकों को इस सुविधा से वंचित कर दिया। नतीजा यह हुआ कि आज 75 साल बाद भी हिंदुओं के बच्चे धार्मिक शिक्षा से पूरी तरह वंचित होकर धर्मांतरण के लिए मजबूर हो रहे हैं।
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धार्मिक शिक्षा मिलना हर हिंदू बच्चे का अधिकार
उन्होंने कहा- परम धर्मसंसद इस परम धर्मादेश के माध्यम से यह घोषित करती है कि धार्मिक शिक्षा प्राप्त करना हर हिंदू बच्चे का मौलिक अधिकार है। आवश्यकता होने पर संविधान में संशोधन किया जाए और हर हिंदू बच्चे को उसके धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त व्यवस्था और वातावरण उपलब्ध कराया जाए।
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धर्म के हर मुद्दे मिले शिक्षा
अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- मानव जीवन के कई कोण हैं, जिनमें धार्मिकता भी है। चूंकि, हमारा पूरा जीवन धर्म सम्मत बीतता है, इसलिए शुरुआती जीवन में ही हम धर्म के नियम-विनियमों के साथ ही साथ उसके मर्म को भी शिक्षा के माध्यम से समझ लिया करते थे।
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उन्होंने कहा- यह माना जाता था कि धर्म विहीन जीवन पशु जीवन है। धर्मेण हीनः पशुभिः समानः। अध्ययन की समाप्ति के बाद गुरुकुल से घर लौटते समय हमारा गुरु अपने बच्चे को दीक्षान्त समारोह में आदेश देता था सत्यम् वद। धर्मं चर आदि। जिसका तात्पर्य धर्मानुकूल जीवन बिताने के आदेश से होता था।
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