प्रोफेसर राहुल सिंह की कलम से
पूरे देश के लिए 5 फरवरी का दिन कलंकित करने वाला था। 104 भारतीयों को जब कमर, हाथ और उनके पैरों में लोहे की बेड़ियां बांध कर अमेरिकी सैन्य विमान से अमृतसर हवाई अड्डे पर उतारा गया होगा तो शहीद-ए-आजम भगत सिंह की रूह कांप गयी होगी। उससे कुछ किमी की दूरी पर हुसैनीवाला में दफनाए गए शहीद-ए-आजम देश के लोगों से ज़रूर पूछ रहे होंगे क्या इसी दिन के लिए हमने कुर्बानी दी थी। क्या इसी दिन के लिए उस साम्राज्यवादी ताकत से मोर्चा लिया था जिसकी सत्ता का सूरज कभी नहीं डूबता था? और सवाल पूछने वालों की इस कतार में केवल भगत सिंह नहीं बल्कि गांधी से लेकर राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद समेत लाखों-लाख शहीद हैं। जिनकी रूहें इस समय देश के सामने सबसे बड़ा सवाल बनकर खड़ी हो गयी हैं।
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70 क्या 700 सालों में ऐसा नहीं हुआ कि देश की कोई बाहरी ताकत हमारी धरती पर आकर अपने विमान से अपने ही सेना के संरक्षण में हमारे नागरिकों को लोहे की बेड़ियों के साथ छोड़कर चला जाए। विमान से उतारे गए गए प्रवासी युवकों की मानें तो उनको यात्रा के 40 घंटों के दौरान शौचालय तक का उपयोग नहीं करने दिया गया। और उसके लिए भी उन्हें विमान में अमेरिकी सैनिकों से हुज्जत करनी पड़ी। देश के किसी भी नागरिक के सम्मान की रक्षा करना वह देश में हो या कि विदेश की धरती पर, देश के सरकार की होती है। और अगर वह सरकार इसमें विफल रहती है तो उसे अपनी कुर्सी पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।
कुछ लोग उन्हें अपराधी करार देकर पूरे मामले को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। पहली बात तो वो अपराधी नहीं हैं। उनमें से ज्यादातर लोग टेम्परेरी वीजा पर गए थे और वीजा बढ़ाने या फिर उसे स्थाई बनाने के लिए उन्होंने आवेदन दे रखे थे। यानि उनका पूरा मामला एक कानूनी प्रक्रिया में था। और अगर वह नहीं पूरी हुई या फिर उसको खारिज कर दिया गया तो अमेरिकी सरकार उन्हें भारत लौटाने के लिए आजाद है। लेकिन इस प्रक्रिया को सभ्य तरीके से पूरा किया जाएगा। न कि उन नागरिकों को अपराधी बनाकर और उन्हें हथकड़ियां पहनाकर किया जाएगा। और इस कड़ी में उन्हें सामान्य नागरिक विमानों से वापस उनके वतन भेजा जाएगा न कि किसी सैन्य विमान से पशुओं की तरह लादकर।
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देश में बीजेपी-आरएसएस से जुड़े कई नेता और पदाधिकारी इसको जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उन्हें कोलंबिया और उसके राष्ट्रपति पेट्रो से सीखना चाहिए। पांच करोड़ आबादी वाले इस देश ने किस तरह से अपने और अपने नागरिकों के स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। यह गौर करने लायक बात है। पेट्रो ने अमेरिकी मिलिट्री विमान को अपने देश में उतरने ही नहीं दिया। उन्होंने कहा कि वह अपने नागरिकों का इतने अपमानजनक तरीके से अपनी धरती पर स्वागत नहीं कर सकते हैं। और फिर उन्होंने अपने उन नागरिकों को लेने के लिए अमेरिका के विभिन्न शहरों में अपने विमान भेजे और फिर उन्हें पूरे सम्मानजनक तरीके से अपने देश वापस ले आए।
लेकिन यहां एक अरब 40 करोड़ आबादी वाले देश की गौरव और गरिमा को ताक पर रख दिया गया। देश की सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने प्रतिकार करने की बात तो दूर उसके विरोध में एक बयान भी देना जरूरी नहीं समझा। उल्टे देश में यह माहौल ज़रूर बनाया जा रहा है कि वो अपराधी हैं लिहाजा उनके साथ इस तरह का सुलूक किया जा सकता है। ऊपर से मोदी जी ने इसी 12 फरवरी को ट्रम्प से मिलने का कार्यक्रम भी बना लिया है। अब मोदी जी से कोई पूछ सकता है कि एक तरफ वही शख्स आपके नागरिकों को हथकड़ी पहना रहा है और दूसरी तरफ आप उसी से गले मिलने जा रहे हैं। मोदी जी यह हथकड़ी उन नागरिकों को नहीं बल्कि यहां की करोड़ों करोड़ जनता को पहनायी गयी है। वह आपको पहनायी गयी है। आपकी पूरी कैबिनेट को पहनायी गयी है।
अगर इस तरह से आप नहीं समझते तो दूसरे तरीके से समझिए जिस शख्स से आप मिलने जा रहे हैं उसके संविधान में लिखा है कि अगर अमेरिका के किसी एक नागरिक को भी विदेश की किसी धरती पर अपमानित या परेशान किया जाता है तो अमेरिकी सरकार उस पर हमले का अधिकार रखती है। लेकिन यहां तो 17 हजार लोगों को अभी हथकड़ी लगनी है। अभी तो महज 104 यात्रियों की पहली खेप आयी है। और इस तरह से 17000 बार देश को अपमानित किया जाएगा। यह देश की आत्मा पर ऐसी मर्मांतक चोट होगी जिसके असर से निकल पाना पूरे देश के लिए बहुत मुश्किल होगा।
इसलिए भारतीय नागरिकों और देश के विपक्ष को मोदी से यह मांग करनी चाहिए कि वह इसके विरोध में तत्काल अपनी अमेरिकी यात्रा रद्द करें। और इस पूरे मसले पर अमेरिकी सरकार से अपना विरोध जाहिर करें। इस बात में कोई शक नहीं कि हम अपने नागरिकों को लेने के लिए तैयार हैं। लेकिन इस अपमानजनक तरीके से नहीं। और जरूरत पड़े तो अपने सभी 17 हजार नागरिकों को अपने हवाई जहाज के जरिये देश में लाने का प्रस्ताव दिया जाए। और अगर यह सरकार ऐसा नहीं करती है तो उससे तत्काल इस्तीफे की मांग की जानी चाहिए। ऐसी सरकार जो अपने नागरिकों के न्यूनतम सम्मान की रक्षा भी न कर सके उसके बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।
दरअसल आरएसएस और बीजेपी को इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि इन्होंने साम्राज्यवाद के खिलाफ न तो कोई लड़ाई लड़ी है और न ही उसके द्वारा दिए गए अपमान को महसूस किया है। इन्होंने पूरी आजादी की लड़ाई में ब्रिटिश हुकूमत के साथ गलबहियां कर रखी थी। इसलिए इन्हें उस अपमान का कोई एहसास ही नहीं हो रहा है। लिहाजा यह चाहते हैं कि पूरी जनता भी उसी को मान ले। लेकिन यह देश और उसकी जनता कतई इसको स्वीकार करने नहीं जा रही है। वह साम्राज्यवाद के खिलाफ दिए गए अपने पुरखों की कुर्बानियों को कतई भुलाने नहीं जा रही है।
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दुनिया में विश्व गुरू होने का डंका पीटने वाले आरएसएस-बीजेपी के नेताओं और उनके भक्तों से ज़रूर यह पूछा जाना चाहिए कि आपने देश को कहां ले जाकर खड़ा कर दिया। कुछ सबक चाहते तो आप अपनी पिछली सरकारों से सीख सकते थे। भारतीय राजनयिक देव्यानी खोबरागडे के साथ अमेरिकी सरकार और उसकी एजेंसियों ने जब अपमानजनक व्यवहार किया था तो यूपीए सरकार ने उस पर एतराज जाहिर किया था। और उसी दौरान भारत आए एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से यूपीए के नेताओं ने मिलने से इंकार कर दिया था। इसके अलावा भारत स्थित अमेरिकी दूतावास की कई सुविधाओं में कटौती कर दी गयी थी। उनको मिलने वाली सुरक्षा व्यवस्था को भी कम कर दिया गया था। और जिसका नतीजा यह रहा कि बाद में अमेरिकी सरकार को खेद जाहिर करना पड़ा था। और उसके लिए उसने माफी मांगी थी।
लेकिन अमेरिका और खासकर ट्रम्प की गोद में बैठे मोदी को इस बात का एहसास ही नहीं है। अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा देने वाले मोदी अपने दोस्त से भारतीय नागरिकों को अपमानित करने का काम करा रहे हैं।दरअसल बीजेपी और आरएसएस देश से नागरिक बोध को ही खत्म कर देना चाहते हैं। वह पूरी नागरिकता को ही इतिहास का विषय बना देना चाहते हैं। और यही वजह है कि वह बार-बार संविधान और लोकतंत्र को खत्म करने की बात करते हैं। और उसकी जगह हिंदू राष्ट्र स्थापित कर पुरानी वर्ण व्यवस्था को बहाल करना चाहते हैं। जिसमें जातियां और धर्म होंगे और उनका संचालन उसी मनुस्मृति और उसी पुरानी हिंदू पद्धतियों से होगा। नागरिकों को तो इन्होंने अपने हिसाब से पशुओं से भी नीचे पहुंचा दिया है। जब वो यह कहते हैं कि गाय माता है और उसका गोबर से लेकर मूत्र तक का पीना श्रेयस्कर होता है।
तब वह आपको पशुओं से नीचे का दर्जा दे रहे होते हैं। जिसमें आप का स्थान गाय के बाद ही आता है। आप बैल के बराबर हो सकते हैं या फिर भैंस के यह आपको तय करना है। लेकिन मनुष्य कम से कम नहीं हो सकते हैं। ऐसे में ऐसी मानसिकता वाले शख्स का क्या नागरिक बोध जगाया जा सकता है? कतई नहीं। लेकिन मामला केवल भक्तों का नहीं है। इस देश का न तो संविधान मरा है। और ना ही लोकतंत्र का अभी खात्मा हुआ है। देश के नागरिक अभी भी अपने पूरे आत्मसम्मान के साथ जिंदा हैं। और उन्हें अपने पुरखों की कुर्बानियों का भी एहसास है। इसलिए वह खड़े होंगे अपनी गौरव और गरिमा को बचाने के लिए। इसलिए मोदी जी यह कोई छोटा-मोटा मसला नहीं है। यह पूरे देश की इज्जत और सम्मान से जुड़ गया है। इसलिए आपको भी इस पर अपनी पोजीशन लेनी होगी। वरना सत्ता की कुर्सी से उतर कर अपने घर का रास्ता नापना होगा।
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