वाराणसी: अवसाद और आनुवांशिक कारणों से होने वाली समस्या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर बच्चों को तेजी से अपना शिकार बना रही है। खास बात ये कि इसके सबसे ज्यादा शिकार लड़कियों से ज्यादा लड़के हो रहे हैं। मंडलीय अस्पताल में आने वाले ऑटिज्म के 60 मामलों में औसतन लड़कों की संख्या 50 तो लड़कियों की संख्या 10 होती है। मंडलीय अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सीपी गुप्ता ने बताया कि इस समय लड़कों को ऑटिज्म से ज्यादा खतरा है। आटिज्म के शिकार बच्चों की औसत उम्र तीन से पांच साल होती है। वहीं, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की मनोवैज्ञानिक डॉ. शैफाली ठकराल ने बताया कि एक स्टडी में सामने आया है कि लड़कियों से चार गुना ज्यादा लड़के ऑटिज्म के शिकार पाए गए हैं।
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ज्यादा अवसाद भी ऑटिज्म का कारण
बीएचयू के मनोचिकित्सक डॉ. संजय गुप्ता ने बताया कि गर्भधारण के समय महिलाएं बच्चों पर ज्यादा ध्यान देती हैं। इसे लेकर वो कई बार अवसाद में आ जाती हैं और इसका इसका खामियाजा आगे जाकर ऑटिज्म के रूप में बच्चे को और उसके साथ-साथ मां पिता को उठाना पड़ता है।
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ये है ऑटिज्म
ऑटिज्म के शिकार बच्चे अन्य बच्चों की तरह व्यवहार नहीं कर पाते। आसानी से कोई चीज सीख और समझ भी नहीं पाते। किसी बात पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाते हैं। बोलने और सुनने में भी परेशानी होती है। मां की बात भी वह ठीक से समझ नहीं पाते।
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जल्द कराएं इलाज
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक ऐसी समस्या है, जिससे बच्चे मिलने-जुलने और आंख मिलाने से भी कतराते हैं। ज्यादातर ये मामले आनुवांशिक होते हैं। गर्भधारण के समय अत्यधिक अवसाद से भी बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण दिखने लगते हैं। ऑटिज्म होने पर जल्द से जल्द बच्चे की बिहेवियर थेरेपी कराई जानी चाहिए।
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