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Wednesday, June 12, 2024

राजनीति में युवाओं का दखल जरूरी

डॉ. राहुल सिंह निर्देशक राज ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन वाराणसी की कलम से

भारत में प्रजातंत्र शब्द का मतलब विरोधाभाषी होता जा रहा है। चुनाव और पद मिलने के बाद जिम्मेदार आगे बढ़ रहे हैं और जनता पीछे छूट रही है। ऐसा सालों से चल रहा है। सत्ता हासिल करने के बाद जनता की भावनाएं नेताओं के लिए कोई महत्व नहीं रखती है। इसके कारण समाज भी पिछड़ता जा रहा है। पहले के नेता समाज में मूल्यों के लिए जीते थे और अब इसके मायने बदल रहे हैं। इसके कारण युवाओं को इसके प्रति ध्यान देना बेहद जरूरी हो गया है। 


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हर छोटी और बड़ी घटनाओं पर मंथन करें तो सामने आता है कि ऐसा जिम्मेदारों के समाज से कट जाने के कारण होता है। यह भी हैरानी की बात है कि शिक्षा व्यवस्था में प्रजातंत्र जैसी बातों को काफी कम महत्व दिया जाता है। इसके कारण लोगों इसके प्रति ज्ञान का अभाव भी समाज को कमजोर बना रहा है। इसके लिए सबसे जरूरी है कि वे युवा जो नई सोच रखते हैं। समाज को आगे लेकर जाने की इच्छाशक्ति रखते हैं और ईमानदारी से वह सबकुछ करने का जिससे समाज समाज में बदलाव आए उन्हें उन्हें आगे आना चाहिए। युवा ही इसकी दिशा बदल सकते हैं। अच्छी पढ़ाई और ज्ञानवान यूथ को इसके प्रति सोचना होगा। 

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सत्ता का मोह छोड़कर जनता और समाज के हितों के बारे में सोचना होगा। इसके बाद समाज में बदलाव निश्चत होना तय है। कुछ युवाओं का ध्यान अपनी पढ़ाई या प्रतियोगी परीक्षाओं पर रहता है, इसलिए वे राजनीति में नहीं जाना चाहते। आज भी अच्छे घरों के उच्च शिक्षित युवा राजनीति में अपना करियर बनाना चाहते हैं। कई विसंगतियां जो हमें देश की राजनीति में दिखती हैं तो उन्हें दूर करने के लिए देश के युवाओं को आगे आना होगा। देश की राजनीति को सुधारने के लिए पढ़े-लिखे युवाओं को राजनीति में आना ही होगा। भारत का भविष्य भी उज्जवल होगा। हालांकि जिन युवा राजनेताओं का ऊपर जिक्र किया गया है, उन्हें राजनीति में बड़ा स्थान या पद परिवारवाद के कारण भी मिला है, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन राजनेताओं ने युवा वर्ग को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया है। 

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मैं अनुभव को दरकिनार नहीं करता परन्तु यदि युवा वर्ग को आगे आने का अवसर नहीं मिलेगा तो कैसे वह अनुभव प्राप्त करेगा आप युवाओं की दस खामियां तो गिनाते हैं। परन्तु आज के तथाकथित अनुभवी राजनीतिज्ञों की कारगुजारियों पर क्यूँ चुप हो जाते हैं? हम सिर्फ यही कह कर चर्चाओं में शामिल होते रहेंगे कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता परन्तु अब और नहीं सहेंगे हम युवाओं को चर्चाओं के मंच से बाहर निकल कर वास्तविकता की कसौटी पर स्वयं को साबित करना ही होगा और अपने हक को उनसे प्राप्त करना ही होगा। देश को सामरिक दृष्टि से सुरक्षित तथा देश के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा प्रदान करने के सन्दर्भ में सैन्य क्षमता एवं पुलिस प्रशासन कि बात आती है तो उसमे तो युवाओं की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इस क्षेत्र में जितना अधिक युवाओं को प्रतिनिधित्व मिलेगा वह देश उतना ही अधिक सुरक्षित रहेगा। 

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कुछ लोग राष्ट्र निर्माण मात्र और मात्र राजनीतिक प्रतिनिधित्व से जोड़कर देखते हैं, परन्तु राष्ट्र निर्माण मात्र राजनीति से ही नही होता .राष्ट्र निर्माण होता है राष्ट्रवासी से यदि देश में निवास करने वाला प्रत्येक राष्ट्रवासी यह ठान लें कि हमें अन्याय नहीं सहना है अन्याय नहीं करना है तो राष्ट्र निर्माण की वह बुनियाद पड़ेगी कि युगों के बीतने पर भी राष्ट्र की ईमारत बुलंद रहेगी। इसके बाद देश और समाज का हित होना तय हो सकता है।

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