वाराणसी: प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र उनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए जैसे प्रत्याशियों की बाढ़ आ गयी है। कई प्रकार के लोग प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने को उतावले हैं और नामांकन पत्र भरने में सफल न होने पर जिला प्रशासन के खिलाफ अनाप - शनाब और अनर्गल बयान बाजी करते नजर आ रहे हैं।
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इसी क्रम में
चौबेपुर थाना क्षेत्र के छितौनी ग्रामसभा निवासी संतोष मूरत सिंह उर्फ "मैं
जिंदा हूं" नामक कागजी मुर्दा भी प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने की हसरत
मन में पाले हुए हैं। हालांकि छितौनी निवासी संतोष मूरत उर्फ मैं जिंदा हूं"
को सरकारी अभिलेखों में मृत घोषित कर दिया गया है। बिगत कई वर्षों से वह स्वयं को
जिंदा घोषित होने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं। सरकारी अभिलेखों में
जिंदा होने के लिए संतोष सिंह अपने गले में "मैं जिंदा हूँ" की तख्ती लटकाकर
वाराणसी मुख्यालय से लेकर दिल्ली के जंतर मंतर तक कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके
हैं।
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संतोष सिंह इन
दिनों वाराणसी संसदीय क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा
चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हुए है। उन्होंने बताया कि वे शनिवार को सुबह अपने
पैतृक निवास छितौनी से जिला मुख्यालय के लिए निकले थे इसी बीच भगतुआ में जाल्हूपुर
पुलिस चौकी प्रभारी शशि प्रकाश सिंह अपने हमराहियों के साथ पहुंचे और उन्हें
हिरासत में ले लिया है।
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पुलिस बोली
पूंछताछ के लिए उठाया-
चौकी प्रभारी शशि
प्रताप सिंह का कहना है कि संतोष मूरत सिंह उर्फ "मैं जिंदा हूं" को
उच्च अधिकारियों के निर्देश पर पूछताछ के लिए बुलाया गया है। उनके पुराने रिकॉर्ड
को ध्यान में रखते हुए जब भी वाराणसी में किसी वीआईपी का आगमन होता है तो संतोष
मूरत को पूछताछ के लिए बुलाया जाता है।
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अभिलेखों में
मुर्दा पर गिरफ्तारी के लिए जिंदा!
संतोष मूरत सिंह
उर्फ मैं जिंदा हूं का कहना है कि कहने को मैं सरकारी अभिलेखों में मुझे मुर्दा
दिखाया जाता है यानि मैं कागजी मुर्दा हूं लेकिन गिरफ्तारी के लिए मैं कैसे जिंदा
हो जाता हूं यह बात मुझे आज तक समझ में नहीं आयी। उन्होंने बताया का वे आवेदन पत्र
लेने से पहले ही 25 हजार रुपए का ट्रेज़री चालान जमा कर चुके हैं।
अब जिला प्रशासन उन्हें नामांकन करने से रोकना चाहता है। संतोष की मानें तो पुलिस
अब तक उन्हें 109 बार अनावश्यक रूप से हिरासत में ले चुकी है।
लोकसभा क्षेत्र वाराणसी से नामांकन करने के लिए उन्होंने लोगो से भिक्षा मांगकर
ट्रेजरी चालान जमा किया है और नामांकन पत्र लेने के लिए जिला मुख्यालय जा रहा था
लेकिन पुलिस बीच रास्ते से ही उन्हें चौकी पर उठा लायी। संतोष का कहना है कि जिला
प्रशासन गलत तरीकों को अपनाकर लोकतांत्रिक अधिकारों से उन्हें वंचित करने के साथ
ही चुनाव लड़ने से उन्हें रोंका जा रहा है जो कि सरासर ग़लत एवं नियम बिरूद्ध है।
कुल मिलाकर कागजी मुर्दे (संतोष मूरत सिंह) की प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव मैदान
में उतरने की हसरत संभवत: अधूरी ही रह जायेगी।
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