वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के समिति कक्ष में गुरुवार को प्रबोधिनी फाउंडेशन एवं प्रबुद्धजन काशी के संयुक्त तत्वावधान में 'काशी में ज्ञानवापी' विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी एवं अजय कृष्ण विश्वेश (पूर्व जिला जज) के सम्मान में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जवलन करके मुख्य अतिथि पूर्व जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश, अध्यक्षता कर रहे कुलपति काशी विद्यापीठ ऐ के त्यागी, मुख्य वक्ता राजर्षि गांगेय हंस विश्वामित्र एवं आयोजन समिति के अध्यक्ष विनय शंकर राय "मुन्ना" ने किया।
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये मुख्य अतिथि अजय कृष्ण विश्वेश ने कहा कि न्यायिक सेवा अन्य सेवाओं से भिन्न होता है, यहां जो भी निर्णय पत्रावली के साक्ष्य और सबूत के आधार पर किया जाता है, हर साक्ष्य का परीक्षण कर सबूत के आधार पर स्वयं के विवेक का प्रयोग करते हुये न्याय को मूर्त रूप दिया जाता है। ज्ञानवापी मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिला न्यायालय में मेरे समक्ष आया, सर्वोच्च न्यायलय का निर्देश हमारे लिए जिम्मेदारी का बोध कराने वाला था, मैने दोनों पक्षो का बहस और जिरह को पूरा सुनने के बाद, साक्ष्यों के आधार पर ही आदेश पारित किया।
उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी केस का फैसला पूर्णतः सत्यता व पारदर्शिता पर आधारित है। अपने पिता का जिक्र करते हुये कहा मेरे पिता की पूरी शिक्षा-दीक्षा बनारस में हुई, उनसे जब भी काशी की बात होती तो बड़े भावावेश में आ जाते थे, वो कहते थे यहाँ पर कंकर-कंकर में शंकर है, काशी तीनों लोकों से न्यारी है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने कहा हमारी संस्कृति हमारी पहली शक्ति है, आज़ादी के 75 साल बाद भी हम विश्व के अग्रणी देश नही बन पाए है। प्रारम्भ से ही हमारी प्राथमिकता सबसे पहले राष्ट्रीय चरित्र की रही है। पहले भारत विश्वगुरु अपने ज्ञान के बल पर था। हमने अपने शिक्षा पद्धति को पीछे छोड़ दिया इसलिए थोड़े पीछे रह गये लेकिन अजय कृष्ण जैसे सपूत पैदा होंगे तो निश्चय ही राष्ट्रीय चेतना पुनः स्थापित होगी।
यह भी पढ़ें: गौ संसद के मंच से राष्ट्रव्यापी आंदोलन का होगा सूत्रपात जगद्गुरुशंकराचार्य स्वामि श्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती
उन्होंने पूर्व जज को धन्यवाद देते हुये कहा आपने भारतीय परम्परा, संस्कृति की संरक्षक के रूप में ज्ञानवापी का निर्णय दिया जिसके लिए भारत सदैव आपका कृतज्ञ रहेगा। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राजर्षि गांगेय हंस विश्वामित्र ने कहा राष्ट्र और राज्य दोनों एक नहीं हैं, लेकिन दोनों का सम्बन्ध शरीर और आत्मा जैसा है, किसी भी देश का भूगोल और इतिहास नही बदलता है। जब भारत में संविधान नही था, तब भी भारत का अस्तित्व था।उन्होंने आगे कहा हमारी सांस्कृतिक शक्ति ही भारत है इसलिए इसकी रक्षा राष्ट्र की रक्षा है।
उन्होंने पूर्व जिला जज को धन्यवाद देते हुये कहा मैंने पद का सम्मान होते बहुत देखा, लेकिन आज पहली बार कद का सम्मान होते देख रहा हूं । विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रदीप राय ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की आलोचना करने की परम्परा हमारे देश में नही रही है, हमारी परम्परा समीक्षा करने की है और इसके लिए सम्मानित न्यायालय है।
सम्मान समारोह मे काशी की जनता की भावनाओ को 125 किलो गेदा और गुलाब के पुष्प से बने विशाल माला से पूर्व जिला जज का अभिनंदन करते हुये अंग वस्त्र सहित स्मृतिचिन्ह प्रदान कर भव्य एवं दिव्य स्वागत आयोजन समिति ने किया, साथ ही महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुनील विश्वकर्मा जिन्होंने राम लला की मूर्ति का स्केच बनाया था, उनका सम्मान स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्र देकर किया गया। विषय प्रस्तावना डॉ. नीरज सिंह, संचालन डॉ. संजय सिंह गौतम एवं धन्यवाद ज्ञापन विनय शंकर राय "मुन्ना" ने किया।
कार्यक्रम मे प्रमुख रूप से डा अशोक राय, जितेन्द्र राय "बब्लू", गिरजानंद चौबे, एडवोकेट दीपा सिंह, महेश्वर सिंह, डा विकास राय, के एन राय, समीर मिश्रा, नितिन राय, राजन सिंह, देव कुमार राजू, दिलीप मिश्रा, अंशु मिश्रा, गगन सिंह, ठाकुर कुश प्रताप सिंह, डा.राकेश तिवारी, प्रो के के सिंह, प्रो. नागेंद्र सिंह, गौरव सिंह" पिन्चू", सुभाष नंदन चतुर्वेदी, शिवधनी पाठक, पर्यावरण विद , समीर सिंह, अभिषेक सिंह "सन्नी", आलोक सिंह, संदीप सिंह "पिन्टू", अनुज राय, कृष्ण चंद, प्रणय कुमार, संदीप मिश्र, अभिषेक मिश्रा इत्यादि की भूमिका रही।
No comments:
Post a Comment