वाराणसी: एक तरफ जहाँ खनन विभाग खनन रोकने का दावा करता है तो वही दूसरी तरफ पुलिस के साथ साथ तथाकथित पत्रकार भी अपनी रोटी सकने में पीछे नही है. आमतौर पर तथाकथित पत्रकार सिर्फ और सिर्फ खनन माफिया के पीछे पड़े रहते है वो भी तब तक जब तक खानन माफिया उनसे मिलकर उनका हिस्सा नही लगा देते.
फाइल फोटो |
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आपको बता दें कि यह खेल उस वक्त शुरू होता है जब खनन माफिया थाना और चौकी से अपनी बातचीत करके खनन शुरू करते है. जैसे ही खनन शुरू होता है तो फिर नंबर आता है तथाकथित पत्रकारों का वो फिर एक्टिव होते है. अगर खनन माफिया उनकी बात मान लें तो किसी को पता भी नही चलता है कि कही खनन भी हो रहा है.
लेकिन साहब जब तथाकथित पत्रकारों का हिस्सा नही बनता है तो समझिये क़यामत आ गयी उसके बाद तो चाहे थानाध्यक्ष हो, चौकी इंचार्ज हो या फिर खनन विभाग रात भर जनाब इनको फ़ोन करके एक एक हरकत की खबर देंते है और कार्यवाही के लिए कहते है और अगर कार्यवाही नही हुई तो दुसरे दिन से ही अधिकारीयों से शिकायत करना शुरू कर देंते है.
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इतना करने के बाद अगर खनन माफिया किसी के जरिये उनसे संपर्क कर लेता है तो बात वही दब जाती है नही तो फिर पत्रकार साहब अपना दूसरा हथकंडा अपनाते है खबर चलाने और अधिकारीयों से जबाब मांगने का फिर तो सभी विभाग एक्टिव मोड पर कार्य करना शुरू करते है और खनन बंद हो जाता है.
लेकिन आप एक और बात जान लें यह खनन सदैव के लिए बंद नही होता है सिर्फ दो चार दिन के लिए होता है इस बिच जिस भी चौकी का मामला होता है उनके जरिये खनन माफिया, पुलिस और पत्रकार साहब की बैठक होती है और आपसी सहमती बनती है की खनन माफिया अपना काम रात के अँधेरे में करेंगे, पुलिस और पत्रकार साहब को उनका हिस्सा मिलता रहेगा. यह है पूरा खेला जो खनन में खेला जाता है.
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