वाराणसी: शहर में शनिवार को मातृ, शिशु एवं छोटे बच्चों के पोषण पर प्रशिक्षण कार्यशाला संपन्न हुई। यह कार्यशाला अलाइव एंड थ्राइव के सहयोग से आई.एम.एस., बी.एच.यू. मेडिकल कालेज में हुई। आयोजन के दौरान तीन अलग-अलग बैच में 100 से चिकित्सकों व स्टाफ नर्सेस ने प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण कार्यशाला की शुरुआत निदेशक आई.एम.एस., बी.एच.यू. ने दीप प्रज्वलित करके किया। 18 दिसम्बर से शुरू हुई यह कार्यशाला 23 दिसम्बर को सम्पन्न हुई।
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बी.एच.यू. मेडिकल कालेज के एस.पी.एम विभाग के विभागाअध्यक्ष डॉ. रवि शंकर ने कहा कि मातृ, शिशु एवं छोटे बच्चों के पोषण में सुधार लाने के लिए चिकित्सकीय सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है। इसके लिए इस तरह की प्रशिक्षण कार्यशाला गुणवत्ता सुधार में सहायक साबित होगी। उन्होंने बताया कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के लिए चिकित्सकीय सुविधा के साथ बेहतर परामर्श भी अत्यावश्यक है। गर्भवती महिला का सही पोषण उसके एवं उसके गर्भ में पल रहे शिशु के जीवन पर दूरगामी प्रभाव डालता है। गर्भावस्था में मां का संपूर्ण आहार शिशु के लंबाई और ऊंचाई पर सकारात्मक असर डालता है। संपूर्ण आहार नहीं मिलने पर बच्चे के मानसिक विकास भी नहीं हो पाता है। फीमेल चाइल्ड होने पर इसका असर भविष्य में उसके बच्चे पर भी पड़ता है।
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अलाइव एंड थ्राइव की साउथ एशिया टेक्निकल एड्वाइजर डॉ. सेवंती घोष ने बताया कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में पोषण और स्वास्थ्य के परिणामों में सुधार के लिए बी.एम.जी.एफ के सहयोग से मल्टी पार्ट्नर परियोजना, एम.आई.वाई.सी.एन सेवाओं के गुणवत्ता में सुधार के लिए आईसीडीएस और स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से यूपी में पोषण और उनके परिणामों में सुधार करना है। इसमें मेडिकल कालेज की बहुत सक्रिय भूमिका हो सकती है।
प्रशिक्षण के दौरान स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. अनिता गुप्ता ने बताया कि गर्भावस्था के पहली तिमाही मे मां को फोलिक एसिड के टेबलेट का सेवन अवश्य कराएं। ऐसा करने से बच्चे में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट की आशंका कम हो जाती है और स्वस्थ मस्तिष्क के साथ बच्चे का जन्म होता है । डॉ. अनिता गुप्ता ने यह भी बताया कि नवजात शिशु की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए उसे जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध पिलाना जरूरी है। यह नवजात शिशु को कई प्रकार के संक्रमण और बीमारियों से सुरक्षित रखता है। स्तनपान कराने से नवजात शिशु के लिए जरूरी सभी पोषक तत्व मिल जाते हैं। स्तनपान से मां को मिलने वाले फायदों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि स्तनपान कराने से प्रसव के बाद बढ़ने वाले वजन पर नियंत्रण होता है। शुरू के तीन महीने में प्रेग्नेंसी रोकने में मदद मिलती है। ब्रेस्ट और ओवरी के कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है। इसके अलावा उन्होंने आईएमएस एक्ट के बारे में चर्चा किया। उन्होंने बताया कि शिशुओं के लिए मां के दूध के वैकल्पिक उपायों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। डिब्बा बंद दूध को बैन करने की आवश्यकता है।
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अलाइव एंड थराइव के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान महिला को प्रतिदिन के भोजन में आयरन एवं फॉलिक एसिड की एक गोली और कैल्शियम की दो गोली प्रतिदिन लेनी चाहिए। एक गर्भवती महिला को अपने आहार सेवन में विभिन्नता लानी चहिए। प्रसव के उपरांत भी 180 दिन तक प्रतिदिन आयरन एवं फॉलिक एसिड की एक गोली और कैल्सियम की दो गोली लेनी चाहिए। बच्चे के जीवन के शुरुआती 1000 दिन सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है। आरंभिक अवस्था में उचित पोषण नहीं मिलने से बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो सकता है जिसकी भरपाई बाद में नहीं हो पाती है।
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बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकेश यादव ने प्रशिक्षुओं को पूरक आहार के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जब बच्चा 6 महीने का हो जाए तब से लेकर दो वर्ष तक स्तनपान के साथ-साथ पूरक आहार बहुत ही आवश्यक है। बच्चे के छह महीने की उम्र पूरी होने के बाद उसे 3-4 चम्मच मसला हुआ अर्ध ठोस आहार देना शुरू करना चाहिए। इस आहार की मात्रा को उम्र के साथ बढ़ाना होता हैं। उन्होंने बताया कि 6 से 8 माह के शिशुओं को स्तनपान के साथ दिन में 2 बार लगभग 250 मिलीलीटर की आधी कटोरी, 9 से 11 माह के बच्चों को स्तनपान के साथ दिन में 3 बार 250 मिलीलीटर की आधी कटोरी अर्धठोस भोजन देना चाहिए । 12 से 23 माह तक के बच्चों को स्तनपान के साथ दिन में 3 बार लगभग 250 मिलीलीटर की एक कटोरी अर्धठोस भोजन देना चाहिए। साथ ही बच्चों के बेहतर पोषण के लिए पूरक आहार में विविधता भी काफी जरुरी है। इससे बच्चों को आहार से जरूरी पोषक तत्त्व प्राप्त होते हैं। तथा हमेशा बच्चों के भोजन में एक चम्मच तेल या घी मिलाना चाहिए इससे भोजन कि कैलोरी और बढ़ जाती है।
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वहीं एम्स गोरखपुर के डॉ. रामा शंकर ने स्त्री एवं प्रसूती रोग, बाल रोग एवं एस.पी.एम विभाग द्वारा मां और बच्चे दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता मे सुधार संबंधी बिंदुओं पर भी जानकारी दी और इसके लिए कैसे लक्ष्य निर्धारित किया जाए और उसको कैसे प्राप्त किया जाए इस विषय पर उन्होंने खास प्रस्तुति पेश की।
प्रशिक्षण कार्यशाला के दो दिन के सत्रों के माध्यम से मातृत्व के प्रथम 1000 दिनों में मातृ पोषण, जन्म के तुरंत बाद एक घंटे के अंदर स्तनपान, छह माह तक सिर्फ स्तनपान (पानी भी नहीं), छह माह के बाद स्तनपान के साथ पूरक आहार के साथ मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए जरुरी प्रोटोकॉल के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी। इस अवसर पर डॉ. सुनील, डॉ. लवीना, डॉ. सुचि, डॉ. अभिषेक और डॉ. अनिल आदि अपने जूनियर रेसिडेंस और स्टाफ नर्सों के साथ उपस्थित रहे। साथ ही प्रशिक्षण में दी जानकारी को अपने विभागों में तत्काल अपनाने लगे।
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मातृ, शिशु एवं छोटे बच्चों के पोषण पर आगे के प्रशिक्षण कार्यशाला जनवरी 2024 माह में एस.पी.एम विभाग की ओर से कई बैचों में होना सुनिश्चित हुआ है। इससे सभी चिकित्सकों व स्टाफ नर्सेस की प्रशिक्षण के माध्यम से दी जाने वाले सेवाओं में सुधार करने में मदद मिलेगी। आई.एम.एस., बी.एच.यू. मेडिकल कालेज का एस.पी.एम विभाग इस प्रशिक्षण को अलाइव एंड थ्राइव की मदद से वाराणसी जनपद के सभी जिला अस्पतालों में भी कराएगा।
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