डॉ राहुल सिंह (निर्देशक राज ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन वाराणसी) की कलम से
युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये देश की व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रणाली को सशक्त बनाना होगा। कोरोना ने देशवासियों को ऐसे स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां पर अनेक लोगों को कौशल की आवश्यकता है । इस समय हर वर्ग के व्यक्ति को एक सभ्य आजीविका की जरूरत है। कौशल एवं व्यवसायिक शिक्षा की जरूरत केवल वंचित समुदायों के लोगों को ही नहीे बल्कि उन लोगों को भी जरूरत है जो औपचारिक शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पायें। भारत दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला युवा देश है और यह युवा शक्ति न्यू इंडिया का आधारस्तंभ है। लिहाजा केंद्र सरकार की नीतियों में बजट में, योजनाओं में। युवाओं को लेकर भविष्य के विकास का विजन दिखाई देता है। जैसा कि अमृत काल के बजट में युवाओं और उनके भविष्य को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। टेक्नोलॉजी, स्टार्टअप से कैसे युवाओं की तकदीर बदल रही है। सुधारों के साथ शिक्षा क्षेत्र की कैसे तस्वीर बदल रही है। युवाओं के दम पर दुनिया के सामने कैसे मजबूती से खड़ा हो रहा है भारत।
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युवा किसी भी देश का भविष्य है, आज, भारत विश्व की सबसे बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहा है। यहाँ प्रत्येक तीसरा व्यक्ति युवा है ऐसे में हमें, इस युवा ऊर्जा का प्रयोग सही दिशा में करने के लिए साधन सोचने होगें। युवाओं के लिए शिक्षा, कौशल विकास, रोजगार और स्वरोजगार के अवसर पैदा करने वाली नीतियां और कार्यक्रम मौजूदा वक्त की सबसे बडी आवश्यकता है। युवाओं को सशक्त बनाने की कुंजी, कौशल विकास के साथ है, जब एक युवा के पास आवश्यक कौशल होता है तो वह उसका उपयोग अपनी आजीविका व दूसरों की सहायता करने के लिए कर सकता है। वह आर्थिक रूप से राष्ट्र का भी समर्थन करता है। युवाओं को शिक्षा के साथ कौैशल विकास और उद्यमशीलता से जोड़ना जरूरी है। साथ ही उन्हें स्कूली शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा भी अति आवश्यक है। कोरोना माहमारी के समय अनेक लोगों को अपने रोजगार, व्यवसाय और नौकरी से हाथ धोना पड़ा इसलिये जरूरी है कि हमारे देश के सभी बच्चों को कौशल विकास की शिक्षा प्रदान की जाये ताकि उनमें उद्यमशाीलता का गुण विकसित हो।
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भारत में कौशल विकास में आने वाली सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां लगभग 93 प्रतिशत लोग अकुशल है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 26.14 मिलियन अकुशल लोग रोजगार के लिए 15-45 उम्र समूह में सम्मिलित हो रहे है। अतः 7 वर्ष में लगभग 104.62 मिलियन अकुशल तथा पहले से कृषि एवं गैर कृषि में लगे हुए 298 मिलियन लोगो को 2022 तक कौशल युक्त करना एक बडी चुनौती है। इसके अतिरिक्त ऐसे बेरोजगार लोगो को शिक्षित करना जिन्होनें अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त नही की है या बीच में छोड़ दी है, भी एक बडी समस्या है। महिलाओं की घटती भागीदारी भी एक गंम्भीर समस्या है। 2011 की जनगणना के आँकडों के अनुसार महिलाओं की ग्रामीण क्षेत्रों में रोगजार में भागीदारी 33.3 प्रतिशत से घटकर 26.5 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में भागीदारी 17.8 प्रतिशत से घटकर 15.5 प्रतिशत रह गई है। इसके अलावा सूक्ष्म, लघु एवं औद्योगिक सेक्टरों में भी अकुशल कार्यबल आर्थिक विकास के लिए बाधक बन रहा है जिसके परिणाम स्वरूप उत्पादकता प्रभावित हो रही है तथा बडी संख्या में बेरोजगारी की दर बढ़ती जा रही है। अतः युवाओं के लिए रोजगार उपलब्ध कराना भी एक बहुत बडी चुनौती है। इस दृष्टिकोण से हमें उद्यमिता विकास पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उद्यमिता में भारत की स्थिति 143 देशों में 76वें स्थान पर है। भारत में प्रति 1000 वर्किंग लोगों पर 0.09 कम्पनी रजिस्टर्ड है, जो कि जी-20 देशों में सबसे कम है।
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कौशल विकास न केवल आजीविका का साधन है बल्कि सामान्य दिनचर्या में स्वयं के जीवंत और ऊर्जावान महसूस करने का एक विशेष माध्यम भी है। अतः युवा शक्ति को शिक्षा, कौशल विकास और प्रशिक्षण द्वारा बेहतर मानव संसाधन के रूप में विकसित करने से न केवल गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक बुराईयो इत्यादि का समाधान मिल सकता है अपितु वे राष्ट्र के समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है। आज यह आवश्यक हो गया है, कि युवाओं की ऊर्जा को उध्र्वगायी बनाया जाये, शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाया जाये, युवाओं में कौशल और तकनीकी क्षमता विकसित की जाए, जिससे भारत उभरती अर्थव्यवस्था की मुख्य चुनौतियों से निपटने में सफल हो सके। वोकेशनल ट्रेनिंग के माध्यम से युवाओं को आज के अनुकूल कौशल का निर्माण करने वाला प्रशिक्षण देना होगा तभी कौशल विकास सफल हो सकता है। कौशल विकास एक बड़ी नैतिकता और जवाबदेही का कार्य है जिसके माध्यम से युवाओं को उद्यमशील बनाया जा सकता है। स्किल्ड युवा निश्चित रूप से कौशल युक्त भारत का निर्माण कर सकता है। कोरोना के समय में भारत में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इस समस्या को काफी हद तक कौशल विकास को विकसित कर कम किया जा सकता है, भारत में कौशल विकास तथा बेरोजगारी की समस्या के मूल में स्कूली स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा की अनुपस्थिति है इसलिये स्कूली स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा को शामिल करना बहुत जरूरी है।
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युवाओं को सशक्त बनाने की कुंजी, कौशल विकास के साथ है, जब एक युवा के पास आवश्यक कौशल होता है तो वह उसका उपयोग अपनी आजीविका व दूसरों की सहायता करने के लिए कर सकता है। वह आर्थिक रूप से राष्ट्र का भी समर्थन करता है। कौशल विकास न केवल आजीविका का साधन है बल्कि सामान्य दिनचर्या में स्वयं के जीवंत और ऊर्जावान महसूस करने का एक विशेष माध्यम भी है। अतः युवा शक्ति को शिक्षा, कौशल विकास और प्रशिक्षण द्वारा बेहतर मानव संसाधन के रूप में विकसित करने से न केवल गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक बुराईयां इत्यादि का समाधान मिल सकता है अपितु वे राष्ट्र के समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते है। वर्ष 2014 की एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत को भली भांति प्रशिक्षित कुशल श्रमिकों की भारी कमी का भी सामना करना पडा है तालिका 1.0 के माध्यम से यह समझा जा सकता है कि यद्यपि भारत युवाओं का देश है परन्तु कुल कार्यबल में से केवल 2.3 प्रतिशत ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है। जबकि अन्य विकसित देशों में प्रतिशत काफी अधिक है।
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