वाराणसी: राष्ट्रीय फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय के प्रशिक्षण केंद्र में पाँच दिवसीय लिम्फ़ेटिक फाइलेरियासिस (एलएफ़) कंट्रोल प्रोग्राम विषय पर प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। सोमवार से शुरू हुई इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के चिकित्सा अधिकारियों और बायॉलोजिस्ट को फाइलेरिया की रोकथाम और उसके चिकित्सकीय निदान के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रशिक्षण का आयोजन राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) तथा चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा किया जा रहा है।
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कार्यशाला के तीसरे दिन बुधवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी ने कहा कि वाराणसी सहित पूरे प्रदेश में वेक्टर जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए संचारी रोग नियंत्रण व दस्तक अभियान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वास्थ्य विभाग समेत अन्य सहयोगी विभागों के द्वारा की गई प्रभावी कार्रवाई व वेक्टर सर्विलान्स से डेंगू, मलेरिया, फाइलेरिया, कालाजार आदि बीमारियों की संक्रमण दर पिछले तीन-चार सालों में बहुत कम हो गई है। जनपद में फाइलेरिया उन्मूलन के लिए पिछले दो वर्षों से ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे (टास) चलाया जा रहा है जिसमें अब तक माइक्रो फाइलेरिया की दर एक प्रतिशत से बेहद कम देखी गई है। इससे हम कह सकते हैं कि वाराणसी वर्ष 2030 तक फाइलेरिया मुक्त जनपद की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। सीएमओ ने समस्त प्रतिभागियों से कहा कि लगातार वेक्टर सर्विलान्स, स्रोत विनष्टीकरण, नाइट ब्लड सर्वेक्षण, साफ-सफाई स्वच्छता से काफी हद तक फाइलेरिया पर काबू पाया जा सकता है।
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संयुक्त निदेशक डॉ शुभा गर्ग ने फाइलेरिया की रोकथाम के लिए ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे (टास) के बारे में विस्तृत जानकारी दी। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य पिछले तीन वर्षों से आईडीए-एमडीए राउंड में लोगों को खिलाई जा रही फाइलेरिया रोधी दवा के संचरण का मूल्यांकन करना है और पता लगाना है कि लक्षित आबादी के सापेक्ष एक प्रतिशत कम लोग फाइलेरिया से ग्रसित हैं या नहीं।
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एनसीडीसी के डॉ अवनेन्द्र द्विवेदी ने फाइलेरिया के इतिहास, जीवन चक्र और दुष्प्रभाव के बारे में विस्तृत जानकारी दी। डॉ द्विवेदी ने कहा कि फाइलेरिया के लक्षण की समय से जानकारी हो जाने पर उपचार संभव है। इसके लक्षण क्यूलेक्स मच्छर के काटने के पांच से 15 साल के अंदर देखने को मिलते हैं। इसलिए बचाव बेहद जरूरी है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य देश में फाइलेरिया यानि हाथ पैरों, अंडकोष व स्तन में सूजन के संक्रमण की रोकथाम करने एवं उससे ग्रसित रोगियों को उचित चिकित्सा प्रदान करना है। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के द्वारा हर साल चार बार इस तरह की प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जाता है।
कार्यशाला में एनसीडीसी की ज़ारी अंजुम, वेत्रिवल सहित अन्य अधिकारी व मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और अंडबार-निकोबार से आए 18 चिकित्सक व बायॉलोजिस्ट प्रतिभाग कर रहे हैं।
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