वाराणसी:,मातृ शिशु स्वास्थ्य और परिवार की खुशहाली में नियोजित परिवार की अहम भूमिका है, लेकिन इसका जिम्मा सिर्फ आधी आबादी के कंधों पर डाल दिया गया है। इस चलन को बदलना होगा। नियोजित और स्वस्थ परिवार के लिए पुरूष को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आगे आना होगा। इसी सोच को साकार करने के लिए इन दिनों सोशल मीडिया पर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की तरफ से ‘‘मर्द भी बने जिम्मेदार’’ हैशटैग के साथ अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि 35 फीसदी भारतीय पुरूष, गर्भ निरोधन के लिए महिला को ही जिम्मेदारी मानते हैं।
एनएसवी सर्जन डॉ
एसके सिंह ने बताया कि पुरुष नसबंदी करने की प्रक्रिया बहुत ही सरल और सुरक्षित
है। इस पूरी प्रक्रिया में केवल 10 से 15 मिनट का समय लगता है और इसमें ज्यादा से ज्यादा दो दिन के आराम की जरूरत होती
है। परिवार नियोजन के साधन को अपनाने की पहल पुरुषों की ओर से की जानी चाहिए, क्योंकि पुरुषों की शारीरिक संरचना महिलाओं की अपेक्षा अधिक सरल होती है।
महिलाओं को मासिक धर्म और प्रसव के दौरान बहुत अधिक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। ऐसे
में दोबारा ऑपरेशन उनके लिए कष्टदाई होता है। उन्होंने कहा कि शादी शुदा ऐसे पुरुष
जिनकी आयु 22 से 59 वर्ष के बीच हो और
उनका परिवार पूरा हो गया हो। तो वह पुरुष नसबंदी के लिए आगे आ सकते हैं।
मँड़ुआडीह निवासी 28 वर्षीय रमेश
(परिवर्तित नाम) बताते हैं कि उनकी शादी वर्ष 2018 में हुई थी। इसके
एक साल बाद लड़का हुआ तथा ढाई साल बाद लड़की हुई। एक लड़का और एक लड़की होने से उनका
परिवार पूरा हो चुका है। अब वह और बच्चे नहीं चाहते हैं। दोनों बच्चे सिजेरियन
प्रसव से हुये थे। तो वह पत्नी का पुनः ऑपरेशन नहीं करवाना चाहते थे। ऐसे में क्षेत्र
की आशा कार्यकर्ता बबीता से उनकी पत्नी ने मुलाक़ात की और अपने पति से पुरुष नसबंदी
पर चर्चा करने के लिए कहा। रमेश ने जब अपनी पत्नी के साथ पुरुष नसबंदी पर बात की।
तो आशा द्वारा बताई गई बातों के बारे में पता चला कि इससे यौन क्षमता और यौन
क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके बाद उन्होंने खुशी-खुशी स्वयं की नसबंदी
कराने का निर्णय लिया। पिछले सप्ताह ही उन्होंने पुरुष नसबंदी कराई। वह खुश हैं कि
इस पहल में पत्नी ने उनका पूरा सहयोग किया।
एक नजर आंकड़ों पर – पुरुष नसबंदी की बात
करें तो वर्ष 2017-18 में इसकी संख्या 25 थी जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 98 हो गई है। वहीं कंडोम उपयोग की बात करें तो वर्ष 2019-20 में इसकी संख्या 6,11,748 थी जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 10,83,273 हो गई है।
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