वाराणसी: इन दिनों प्रचंड गर्मी अपना रौद्र रूप दिखा रही है जिसके कारण न सिर्फ आम आदमी बल्कि पशु पक्षियों की परेशानियां भी बढ़ गयी है। अधिकांश लोग मानते हैं कि गर्मी का माैसम फसलों के लिए भी खतरनाक होता है जबकि हकीकत यह है कि किसान बढ़ती गर्मी का फायदा उठा कर खेतों मे नयी जान डाल सकते हैं।
दरअसल खेतों में छिपे हुए कीड़े मकोड़े एवं फसलों में लगने वाले रोंगों के पैथोजेन फसलों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। भूमि जनित कीट लार्वा, अंडे, रोगों के रोगजनक एवं निमैटोड खरपतावर के बीज पहले से ही खेत की मिट्टी में मौजूद होते हैं, जो मौका मिलते ही खेत और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। हालांकि इनकी रोकथाम के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों और फंफूदी नाशकों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इन तरीकों से फसल के इन शत्रुओं का सम्पूर्ण नियंत्रण नहीं हो पाता है बल्कि फसलों के मित्र कीट भी मर जाते हैं।वहीं दूसरी ओर मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी प्रभावित होती है।ऐसे में किसानों के पास सबसे बड़ा हथियार गर्मी का सीजन और धूप है।किसान गर्मी के मौसम में छिपे हुए फसल के शत्रु कीटों, रोगजनकों और खरपतवारों को मृदा सोलराईजेशन (मृदा सौर्यीकरण) की तकनीक अपनाकर खत्म कर सकते हैं।
कब और कैसे करें मिट्टी का सोलराईजेशन-
जिला कृषि रक्षा अधिकारी राजेश कुमार राय ने बताया कि जिस प्रकार हम बीज बोने से पहले बीजों का उपचार करने के लिए दवाओं का प्रयोग करते हैं ठीक उसी प्रकार जमीन की मिट्टी का सोलराईजेशन (मृदा सौर्यीकरण) करते हैं। बताया कि सोलराईजेशन की प्रक्रिया के लिए एक पतली पारदर्शी प्लास्टिक शीट का उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी के तापमान को बढ़ाता है।इस तकनीक से पहले से मौजूद नेमेटोड, कीट-रोग, निमेटोड के जीवांश और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।उन्होंने बताया कि जब तेज धूप और तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 45 डिग्री सेंटीग्रेड हो उस समय मिट्टी का सोलेराईजेशन करना उचित रहता है इसके लिए मई-जून का महीना सबसे मुफीद रहता है।
पारदर्शी प्लास्टिक का करें प्रयोग-
कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा.नरेंद्र रघुवंशी ने बताया कि सोलराईजेशन के लिए खेतों में बोई जाने वाली फसल की जगह को पौध रोपण या बीज की बुवाई से 4-6 सप्ताह पहले छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेते हैं। इन क्यारियों को 200 गेज की पारदर्शी प्लास्टिक से ढक दिया जाता है और प्लास्टिक के किनारों को मिट्टी से ठीक तरह से दबा दिया जाता है जिससे बाहर की हवा अंदर प्रवेश न कर सके। ऐसा करने के बाद इसे एक से दो महीने तक छोड़ दिया जाता है. इस प्रकिया से ढकी प्लास्टिक के अंदर का तापमान बढ़ जाता है जिससे मिट्टी में पहले से मौजूद रोगों के रोग जनक हानिकारक कीटों के अंडे, प्यूपा और निमेटोड और कुछ खरपतवारों के बीज नष्ट हो जाते हैं।इस तरह भूमि में बिना किसी रसायन के उपयोग किेए भूमि को उपचारित कर भूमि जनित कीट रोगों और खरपतवारों से छुटकारा मिल जाता है।
किसान बोले-कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली तकनीक-
चौबेपुर क्षेत्र में मुनारी के प्रगतिशील किसान रामचंद्र पटेल, परानापट्टी के धीरेंद्र सिंह, बर्थरा खुर्द के जय सिंह, बबियांव के सौरभ रघुवंशी ने बताया कि सोलराईजेशन की तकनीक कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली तकनीक है। इसके प्रयोग से न सिर्फ महंगे व जहरीले कीटनाशकों से मुक्ति मिल जाती है बल्कि बिषमुक्त खाद्यान्न उत्पादन में भी सहायक है।
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