देश के युवा नशे में नहीं बल्कि खेल में आगे बढऩे चाहिएं। उन्हें नशों से दूर रहकर रचनात्मक कार्यों में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। आज युवा जहां खेलों से दूर है, वहीं संस्कृति व नैतिकता से भी विमुख होता जा रहा है। जब युवा अपनी जड़ों से ही नहीं जुड़ेगा तो राष्ट्र को विश्व पटल पर कैसे आदर्श स्थान पर सुशोभित कर पाएगा।
देश में युवाओं के लिए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, इसके पीछे भी यही सोच है कि उनके अच्छे भविष्य का निर्माण हो सके और वे देश को रचनात्मक दिशा में गति प्रदान कर सकें। स्वामी विवेकानंद जी का भी यही सपना था कि देश का युवा तब तक लक्ष्य के पीछे चलता रहे, जब तक उसे उसकी प्राप्ति न हो जाए। भारत द्वारा हाल में ही अपनाई गई नई शिक्षा नीति का उद्देश्य भी युवाओं का सार्वभौमिक विकास है।
भारत प्राचीन काल से ही युवा सोच व युवा जोश की पुण्यभूमि रहा है। स्वामी विवेकानंद, मंगल पांडे, लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस आदि युवाओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर करके यह साबित कर दिया कि युवाओं के लिए कुछ भी अस भव नहीं। स्वामी विवेकानन्द ने युवा शक्ति का आह्वान करते हुए कहा था कि ‘समस्त शक्तियां तु हारे अन्दर हैं, तुम कुछ भी कर सकते हो और सब कुछ कर सकते हो, यह विश्वास रखो। मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो। तत्पर हो जाओ।’
आज देश के युवा वर्ग को विवेकानन्द जी के विचारों से सीख लेकर उन्हीं के बताए मार्ग पर चलने की आवश्यकता है, तभी वे बेहतर भारत का निर्माण कर सकते हैं। आज आवश्यकता है उन्हें स्वयं को युवा होने की इस कसौटी पर जांचने की कि क्या वे अनीति से लड़ते हैं, दुर्गुणों से दूर रहते हैं, काल की चाल को बदल सकते हैं, क्या उनमें जोश के साथ होश भी है, क्या उनमें राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्था है, क्या वे समस्याओं का समाधान निकालते हैं, क्या वे प्रेरक इतिहास रचने वाले हैं और क्या वे कही बातों को करके दिखाते हैं?
युवाओं को ‘महात्मा गांधी’ के कहे इस कथन के मर्म को समझने और उसे जीवन में उतारने की आवश्यकता है कि ‘खुद वो बदलाव बनिए, जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं।’ युवाओं को राष्ट्र व समाज के प्रत्येक कार्य-क्षेत्र में अपने कदम रखने होंगे क्योंकि उनके पास नई सोच, नए विचार, तार्किक चिंतन, ऊर्जा व ज्ञान का अथाह भंडार है और यह ‘शक्ति भंडार’ जब किसी क्षेत्र में लगेगा तो उसका सर्वांगीण विकास अवश्य होगा। युवा केवल तन से ही युवा नहीं होना चाहिए, बल्कि मन से भी उसका युवा होना आवश्यक है। तभी तन व मन की संयुक्त क्रिया से एक स्वस्थ विचार की रचना होती है, जो एक स्वस्थ समाज का आधार बनता है। यहीं से समाज की विकास प्रक्रिया का आरम्भ होता है।
हमारी सरकारें भी युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयासरत हैं, चाहे वह नेहरू युवा केंद्र के माध्यम से हो, एन.सी.सी., एन.एस.एस. या युवाओं से संबंधित कोई अन्य कार्यक्रम, इन कार्यक्रमों व योजनाओं का पहला व अंतिम उद्देश्य युवाओं का विकास ही है। भारतीय लोकतंत्र का भविष्य भी युवा कंधों पर ही है। युवा देश का भविष्य तो है ही, परंतु वर्तमान भी है। परिवर्तन का दूसरा नाम ही युवा है और युवा शक्ति जिस ओर चलती है, जमाना, समाज उसी ओर चल पड़ता है।
युवा वही है जिसकी आंखों में सपने, मन में इरादे, हाथों में शक्ति, मुख पर सकारात्मकता का तेज हो अन्यथा तन से युवा तो कोई भी हो सकता है। मन से युवा होना अत्यावश्यक है, क्योंकि देश को फौज की जरूरत तो है, परंतु वह फौज वैचारिक चिंतन में निपुण होनी चाहिए। भारत को विश्व पटल पर ज्ञान की कीर्ति से जगमग करने वाले महान भारतीयों के विचारों पर चल कर आज भारत का युवा वैश्विक पटल पर भारत को एक बार पुन: ‘विश्व गुरु भारत’ बनाने की ओर अग्रसर है।
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