वाराणसी: मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी के नेतृत्व व एसीएमओ/नोडल अधिकारी डॉ राजेश प्रसाद की अगुवाई में यूनिसेफ की राज्य स्तरीय टीम ने बुधवार को जनपद में चल रहे नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी) कार्यक्रम की हकीकत परखी गई। टीम ने इस दौरान अराजीलाइन ब्लॉक और सर सुंदर अस्पताल बीएचयू के सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट (एसएनयूसी) का विधिवत मुआयना किया।
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टीम ने सर्वप्रथम अराजीलाइन ब्लॉक के धधोरपुर गांव में भ्रमण कर एचबीएनसी कार्यक्रम के अन्तर्गत आशा कार्यकर्ता से गृह भ्रमण के दौरान दी जाने वाली जानकारी और सेवाओं के बारे में जानकारी ली। आशा सरिता पटेल ने लाभार्थी गुंजन पटेल की 20 दिन की बच्ची का हाथ धोने के पश्चात तापमान, वज़न लिया और मां को बच्ची को ठंड से बचाए रखने के लिए सारी विधिकर के मां को सिखाया। साथ ही संक्रमण बीमारियों के लक्षण के बारे में भी बताया। इसके लिए टीम ने आशा की सराहना की। इसके अलावा बीएचयू के एसएनसीयू भ्रमण के दौरान समुदाय और स्वास्थ्य केंद्रों से कम वजन के बच्चों के सन्दर्भ, उपचार और डिस्चार्ज के बाद फॉलोअप के बारे में जानकारी ली। बाल रोग विभाग अध्यक्ष प्रोफसर डॉ अशोक सिंह ने टीम को समस्त जानकारी से अवगत कराया। टीम में यूनिसेफ के चीफ फील्ड ऑफिसर डॉ ज़ाकिर एडम, डॉ कनुप्रिया, डॉ अमित, डॉ परवेज़ आलम और डॉ निपुण शामिल थे। इस दौरान अधीक्षक डॉ नवीन सिंह, ग्राम प्रधान, डीसीपीएम, स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी, बीपीएम, बीसीपीएम, यूनिसेफ से प्रदीप विश्वकर्मा, डॉ शाहिद, आलोक वर्मा एवं अन्य लोग उपस्थित रहे।
गौरतलब है कि शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल (एचबीएनसी) कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसमें आशा कार्यकर्ता शिशु के जन्म के बाद घर पर जाकर छह से सात बार विजिट करती हैं और शिशु के स्वास्थ्य का फॉलोअप करती हैं।
एचबीएनसी के जरिए आशा बचा रहीं शिशुओं की जान – सीएमओ डॉ संदीप चौधरी ने बताया कि प्रसव के बाद नवजात के बेहतर देखभाल की जरूरत बढ़ जाती है। संस्थागत प्रसव के बाद दो दिनों तक मां और नवजात का ख्याल अस्पताल में ही रखा जाता है। इसके पश्चात शुरूआती के 42 दिन विशेष देखभाल के लिए अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे में होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर (एचबीएनसी) यानि गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम काफी कारगर साबित हो रहा है. इस कार्यक्रम के तहत संस्थागत प्रसव एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में आशा 42 दिनों तक छह से सात बार घर-घर भ्रमण कर नवजात की देखभाल करती हैं और अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
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