आपको बता दें कि जब हमारे संवाददाता दिव्यांग, वृद्ध और पत्रकारों के लिए टिकट खिड़की तो खुली थी लेकिन वहा पर कोई भी टिकट देने वाला मौजूद नही था हमारे पत्रकार के बार बार आवाज लगाने के बाद भी कोई खिड़की पर नही आया।
जैसा कि आपने फोटो में देख ही रहे हैं कोई भी मौजूद नही उसके बाद भी हमारी टीम और संवाददाता करीब आधे घंटे तक वहा खड़े रहे एक सज्जन आए और खिड़की के सामने बंद का बोर्ड लगा कर चले गए।
अब सवाल यह है कि क्या रेलवे दिव्यांगो, वृद्धों और पत्रकारों का मजाक उड़ाने के लिए यह खिड़की चालू किया है या सुविधा के लिए जहा एक ओर भारत के प्रधानमंत्री दिव्यांगों और वृद्धों को सुविधा देने की बात करते है वही अफसर शाही इन सुविधाओं को सिर्फ कागज में दिखा कर अपना काम कर रहे है। अब देखना यह है कि इस खबर के बाद क्या ऐसे अफसरों पर कोई असर पड़ता है या नही।
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