वाराणसी: टीबी रोगियों की मदद के लिए स्वास्थ्य विभाग और सहयोगी संस्थाएं लगातार आगे आ रही हैं। प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत अब तक जनपद में 43 निक्षय मित्र बन चुके हैं जो टीबी मरीजों को उपचार के साथ पौष्टिक आहार किट और भावनात्मक सहयोग कर रही हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने गोद लिए गए टीबी मरीजों के लिए 150 पोषण पोटली स्वास्थ्य विभाग को प्रदान की। इन पोषण पोटली को लगातार स्वास्थ्य केन्द्रों पर जरूरतमंत टीबी मरीजों को वितरित की जा रही हैं।
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निक्षय मित्र बने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी और जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ पीयूष राय ने पाँच-पाँच टीबी मरीजों को गोद लिया है। सीएमओ ने कहा कि टीबी रोगियों के लिए दवा के साथ-साथ प्रोटीनयुक्त पोषक आहार का सेवन बहुत ही जरूरी होता है। धन के अभाव में बहुत से टीबी रोगी पोषक खाद्य पदार्थो का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। इसके लिए उन्होने समस्त स्वयं सेवी संस्थाओं से अपील कि निक्षय मित्र बनकर टीबी मरीजों को गोद लें और उनके पौष्टिक आहार व उपचार में सहयोग करें।
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जिला क्षय रोग अधिकारी ने कहा कि आईएमए अध्यक्ष डॉ कार्तिकेय सिंह एवं सचिव डॉ राजेश्वर सिंह द्वारा प्रदान की गईं पोषण पोटली गोद लिये गये टीबी रोगियों को वितरित की जा रही है। पोषण पोटली से प्राप्त पोषक तत्व युक्त आहार से टीबी रोगी और भी जल्द स्वस्थ होंगे। गोद लेने वाली संस्थाओं द्वारा हर क्षय रोगी को हर माह पोषण पोटली में एक किलो मूंगफली, एक किलो भुना चना, एक किलो गुड़, एक किलो अन्य अनुपूरक आहार जैसे हार्लिक्स, बार्नबीटा, कोंपलैन, बिस्कुट, लाई दिया जा रहा है।
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डॉ पीयूष राय ने बताया कि वर्तमान में जिले में 6573 क्षय रोगी उपचारित हैं। वर्ष 2020 से 2022 के बीच अब तक कुल 4566 टीबी रोगियों को प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान से जोड़ा गया है। स्वयंसेवी संगठनों, शैक्षणिक संस्थाओं, चिकित्साधिकारियों, जन प्रतिनिधियों आदि के द्वारा 4214 मरीजों को गोद लेकर उनके उपचार के साथ पौष्टिक आहार किट और भावनात्मक सहयोग में योगदान दे रहे हैं। उन्होने बताया कि निक्षय पोषण योजना की शुरुआत से अब तक 8.65 करोड़ से ज्यादा की धनराशि क्षय मरीजों के बैंक खाते में डीबीटी के जरिये भेजी जा चुकी है।
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जनपद के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) को निर्देशित किया है कि हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर जनपद को टीबी मुक्त करने के लिए सर्वप्रथम एक-एक गांव का चयन कर लें और उसे टीबी मुक्त करने का प्रयास करें। टीबी मरीजों के गहन सम्पर्क में रहने वाले उनके पारिवारिक सदस्यों की भी टीबी की जांच कराएं।
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