वाराणसी: फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम एमडीए (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) के तहत जनपद में लोगों को फाइलेरिया रोग से बचाव के साथ संक्रमण का पता लगाने के लिये स्वास्थ्य विभाग द्वारा ब्लड सर्वे के तहत रात्रि के प्रहर में सैंपल लिया जा रहा है। फाइलेरिया से ग्रसित मरीजों की खोज के लिए रात के समय में रक्त पट्टिका तैयार की जाएंगी। जांच में पॉज़िटिव पाये जाने पर सरकार द्वारा मरीजों का निःशुल्क इलाज कराया जाएगा।
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इस संबंध में बुधवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में सीएमओ डॉ संदीप चौधरी की अध्यक्षता में फाइलेरिया नियंत्रण इकाई के स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षण दिया गया। इस दौरान सीएमओ ने बताया कि रात्रि रक्त पट्टिका एकत्रीकरण (नाइट ब्लड सर्वे) के लिए टीम रात आठ बजे से अर्धरात्रि 12 बजे तक लोगों के रक्त का सैंपल लेकर स्लाइड बनाने का कार्य करेगी। जनपद के सभी ब्लॉक व शहर स्तरीय स्वास्थ्य केन्द्रों यह अभियान 26 अगस्त से 10 सितंबर तक चलाया जाएगा। विभाग द्वारा हर पीएचसी-सीएचसी से 600 ब्लड स्लाइड तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व अभियान के नोडल अधिकारी डॉ एसएस कनौजिया ने बताया कि फाइलेरिया के माइक्रोफाइलेरी अपने नेचर के मुताबिक रात्रि के समय रक्त में सक्रिय हो जाते हैं, इसी के आधार पर लक्षण को आसानी से पहचाना जा सकता है। इसलिए रात में ही ब्लड सैंपल लिया जाता है और उसकी स्लाइड बनाकर जाँच के लिये लैब में भेजा जाता है। जहां लैब टेक्नीनीशियन द्वारा परीक्षण का कार्य शुरू कर दिया जाता है। उन्होने टीम से निर्धारित समय रात आठ बजे के बाद ही ब्लड स्लाइड लेने के लिए ज़ोर दिया।
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जिला मलेरिया अधिकारी (डीएमओ) शरद चंद पांडे ने बताया कि इस अभियान के तहत हर ब्लॉक व नगर से 600-600 ब्लड स्लाइड एकत्रित की जाएंगी। जांच के बाद यदि माइक्रो फाइलेरिया की दर एक प्रतिशत से कम हुई तो यह सर्वे पुनः किया जाएगा। इस सर्वे में सभी का रेपिड टेस्ट (एफ़टीएस किट) किया जाएगा जिससे फाइलेरिया से ग्रसित मरीज का जल्द से जल्द पता लग सकेगा। इसके बाद मरीज को तत्काल प्रभाव से उपचार पर रखा जाएगा।
बायोलोजिस्ट एवं रामनगर फाइलेरिया नियंत्रण इकाई के डॉ अमित सिंह, प्रशिक्षक डॉ परशुराम गिरि और डब्ल्यूएचओ से डॉ निशांत ने अभियान की तैयारियों के साथ फाइलेरिया के लक्षण, जांच, उपचार आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी। बताया कि यह बीमारी हाथीपांव नाम से भी प्रचलित है। लिंफेटिक फाइलेरियासिस को आम बोलचाल में फाइलेरिया या हाथीपांव कहते हैं। यह रोग मच्छर के काटने से ही फैलता है। समय से दवा लेकर इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। साल में एक बार पूरी जनसंख्या को फाइलेरिया से बचाने के लिए निःशुल्क दवा खिलाई जाती है।
इस अवसर पर चिकित्साधिकारी डॉ अतुल राय, डीएचईआईओ हरिवंश यादव, डीसीपीएम रमेश प्रसाद वर्मा, जिला नगरीय स्वास्थ्य समन्वयक आशीष सिंह सहित अन्य स्वास्थ्यकर्मी मौजूद रहे।
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लक्षण - फाइलेरिया के सामान्यतः कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं। बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द और सूजन की समस्या दिखाई देती है। पैरों और हाथों में सूजन, हाथीपांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों का सूजन), महिलाओं के स्तन में सूजन के रूप में भी यह समस्या सामने आती है। इस बीमारी से बचने के लिये सभी को अपने चारों तरफ साफ-सफाई रखने के साथ मच्छरदानी, मास्किटो क्रीम आदि मच्छरों से बचाव के उपाय करने चाहिये।
उपचार व सहयोग - जांच में पाजिटिव आने के बाद मरीजों का चिकित्सा का खर्च स्वास्थ्य विभाग वहन करता है। मरीज को पहले वर्ष में चार बार दवा खिलाई जाती है, जबकि दूसरे वर्ष में तीन बार तथा तीसरे वर्ष से दो बार दवा खिलाई जाती है। इस रोग से पूरी तरह से छुटकारा पाने के लिये इस दवा का कोर्स पूरा करना अति आवश्यक है। संक्रमित मच्छर के काटने से फैलने वाले रोग लिंफेटिक फाइलेरियासिस को खत्म करने के लिए प्रत्येक वर्ष में एक बार राष्ट्रीय स्तर पर मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम चलाया जाता है।
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