वाराणसी: धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज सनातन धर्म के वह महान ध्वजवाहक थे जिन्होंने धर्म के लिए जो कहा उसपर चल के दिखाया। अपने वचन को अपने आचरण में उतारने वाले व्यक्तित्व ही धर्मसम्राट हो सकता है। सनातन धर्म को आत्मसात करते हुए वसुधैव कुटुंबकम की भावना का पोषण स्वामी करपात्री जी महाराज जैसे अलौकिक शक्ति के द्वारा ही संभव है। उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने शनिवार को दुर्गाकुण्ड स्थित धर्मसंघ शिक्षा मण्डल के प्रांगण में चल रहे 115 वें करपात्र प्राकट्योत्सव के अवसर पर आयोजित करपात्र रत्न समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कही। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि जीव मात्र में भेदभाव ना कर सबके लिए समभाव रखने वाले व्यक्तित्व थे करपात्री जी महाराज, उनकी कही बातों पर आज पूरा विश्व विचरण कर रहा है, उनकी दी हुई शिक्षा को सभी धर्मों के अनुयायी स्वीकार कर रहे है।
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अध्यक्षता करते हुए धर्मसंघ पीठाधीश्वर स्वामी शंकरदेव चैतन्य ब्रह्मचारी जी महाराज ने कहा कि जब भी धर्म शास्त्र अथवा सनातन धर्म के उन्नयन में स्वामी करपात्री जी महाराज की आवश्यकता पड़ी, वह वहाँ उपस्थित रहे। उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को सनातन धर्म के प्रति समर्पित कर देने वाले महापुरुष थे। अब वह समय आ गया है जब स्वामी जी की इच्छानुरूप गौ माता को संरक्षित करने के लिए कड़े कानून बनाये जाने की जरूरत है। तभी भारत रामराज्य की अवधारणा को पूर्ण कर पायेगा।
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इससे पूर्व समारोह का शुभारंभ चारों वेदों के स्वस्तीवाचन एवं पौराणिक मंगलाचरण के साथ हुआ। तत्पश्चात अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं करपात्री जी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुआ। संचालन पण्डित जगजीतन पाण्डेय, स्वागत राजमंगल पाण्डेय एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दयानिधि मिश्र ने दिया।
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समारोह में मुख्य रूप से स्वामी दीन दयालु जी महाराज, संत मुरलीधर जी महाराज, पवन ब्रह्मचारी, डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र, प्रोफेसर उपेंद्र पाण्डेय, डॉ. शैलेश मिश्र, प्रोफेसर जयशंकर लाल त्रिपाठी, प्रोफेसर रामनारायण द्विवेदी, प्रोफेसर उपेंद्र त्रिपाठी, डॉ. विनय पाण्डेय, प्रोफेसर एके जोशी आदि प्रबुद्धजनो ने स्वामी जी के कृतित्व पर प्रकाश डाला।
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इन्हें मिला सम्मान-
समारोह मे धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के कृपा पात्र शिष्य रहे वृंदावन के पण्डित व्यास नंदन शास्त्री को अतिविशिष्ट करपात्र रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मान स्वरूप एक लाख रुपए, प्रशस्ति पत्र, अंगवस्त्र, श्रीफल प्रदान किया गया। वहीं काशी के ख्यात लज्योतिषाचार्य पण्डित ऋषि द्विवेदी एवं पण्डित सुरेश शास्त्री को करपात्र गौरव से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मान स्वरूप नकद राशि, प्रशस्ति पत्र, अंगवस्त्र, श्रीफल आदि प्रदान किया गया।
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