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Friday, June 10, 2022

अस्थियों के ढेर को देख कर प्रभु राम नही सह सके भक्तों की पीड़ा - बाबा बालक दास

 वाराणसी: 8 जून अखिल भारतीय सनातन समिति, जैतपुरा द्वारा आयोजित संगीतमय रामकथा के आठवें दिन की कथा में मानस वक्ता संत बालक दास जी महाराज ने कहा कि रास्ते में जो भी ऋषि मुनि मिले उनके आश्रम में जाकर भैया लक्ष्मण एवं माता सीता सहित शीश झुकाते हुए उनके कुशल क्षेम पूछते हुए वन में आगे बढ़ते गए। एक स्थान पर काफी मात्रा में मनुष्यों के अस्थि का ढेर देखकर वह काफी व्यथित हुए तब उन्हें जंगल में रहने वाले भील ने बताया कि प्रभु यह अवशेष राक्षसों ने ऋषि मुनि जो यज्ञ करते हैं या आप का सुमिरन करते हैं। उन्हें यहां के राक्षस मारकर खा जाते हैं तथा यज्ञ विध्वंस कर देते हैं, जिससे हम लोगों का जीना दूभर हो गया है।  यह सुनकर प्रभु ने उन लोगों को आश्वस्त किया कि मैं धरती पर जो भी राक्षस मिलते जाएंगे, मैं उनका संहार अवश्य करूंगा तथा आपकी रक्षा भी करूंगा। फिर प्रभु रास्ते में जयंत का उद्धार करते हुए ताड़का का भी उन्होंने वध किया। वन में ही उनकी मुलाकात जब सुपर्णखा से हुई सुपर्णखा ने दोनों भाइयों के सुंदरता को देखकर उनसे अपने विवाह की प्रस्ताव को रखा और उनके इनकार करने पर जब वह राक्षस का रूप धारण उसने डराने का प्रयास किया तब दोनों भाइयों ने उसके नाक और कान का देधनकर उसे छोड़ दिया। वह इसी रूप में उसी जंगल में रहने वाले अपने भाई खरदूषण को बता कर उन्हें इसके बदले बदला लेने के लिए कहा जब दोनों भाई राम लक्ष्मण से युद्ध करने लगे तब प्रभु ने अल्प समय में ही खर दूषण का वध करके मानो लंका नरेश रावण को युद्ध के लिए खुली चुनौती दी व उसी विकराल रूप में अपने भाई रावण के पास लंका पहुंचकर सारे वृत्तांत को सुनाया। तब क्रोधित होकर उसने राम लक्ष्मण तथा उनके साथ रूपवती सीता के ही रहने की बात बन में रावण को बताया इस पर क्रोधित होकर रावण अपने मामा मारीच को सोने का हिरण बनकर प्रभु राम को रिझाने के लिए जंगल में भेजा इधर रावण चुपके से बन में साधु का वेश बनाकर माता सीता की कुटिया में लक्ष्मण रेखा की मर्यादा को ध्यान में रखकर भिक्षा मांगने के लिए अकेले में पहुंचा। इसके पश्चात उसने माता सीता को जबरदस्ती अपने विमान में बैठाकर आकाश मार्ग से लंका की ओर चल पड़ा माता सीता के करुण क्रंदन से गिद्ध जटायु ने माता सीता को छुड़ाने के लिए कई बार रावण के ऊपर हमला भी किया। लेकिन रावण ने तलवार से जटायु का पंख काट कर उन्हें अधमरा करके आगे की ओर चल पड़ा। रास्ते में जब प्रभु माता सीता की खोज में जा रहे थे, जटायु के यह दृश्य को देखकर उन्होंने पूछा सारा वृतांत जटायु ने उन्हें बताया इसके पश्चात प्रभु राम ने गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार अपने कर कमलों के द्वारा करके उन्हें स्वर्ग धाम भेज दिया।




अंत में जयपुर राजस्थान से पधारे नरसिंह पीठाधीश्वर संत अवधेश दास जी महाराज ने कहा कि रामकथा को मात्र सुनने एवं सुनाने तथा इस प्रकार के आयोजन कराने वाले का प्रभु संपूर्ण मनोरथ पूर्ण करते हैं एवं आपने बड़े ही विशेष रुप से राम कथा की महिमा का बखान भी किया।

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अंत में व्यासपीठ की आरती डॉ अजय जायसवाल, जयशंकर गुप्त, रवि जी, गिरीश वर्मा बबलू, भैयालाल जायसवाल, रवि प्रकाश जी, प्रमोद यादव मुन्ना, वतन कुशवाहा, मदन यादव, आनंद कुमार मौर्य, चंद्रलेखा मौर्य, रविशंकर सिंह, सरिता सेठ, डॉ पुष्पा जायसवाल, रविनंदन तिवारी ने की। 


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