पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों ने आम और खास सबकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक तरफ इनकी खरीद से लेकर रिफाइनरी तक जाने और पेट्रोल पंप पर पहुंचने का खर्च आपकी जेब से वसूला जाता है। वहीं केन्द्र और राज्य सरकारें ऊंचा टैक्स लगाकर खजाना भर रही हैं। उपभोक्ताओं को राहत देने की बजाय सत्ता पक्ष और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप में उलझा है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी तेल की कीमतों पर अपनी राय रखनी पड़ी। तो आइए समझतें है कि तेल के खेल में आपकी जेब से कैसे वसूली होती है।
ऐसे
तय होती तेल की कीमत
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे
तेल के दाम 102 डॉलर प्रति बैरल के करीब है। देश में कच्चे तेल के कॉन्ट्रैक्स से
पंप पर बिकने वाले पेट्रोल का चक्र 22 दिन का होता है यानी महीने की
एक तारीख को खरीदा गया कच्चा तेल पंप पर 22 तारीख को बिकने पहुंचता है (औसत
अनुमान)। एक लीटर फुटकर तेल की कीमत में कच्चे तेल के प्रॉसेसिंग का खर्चा जुड़ता
है उसके बाद जब वो रिफाइनरी से निकलता है तो उसका बेस प्राइस तय किया जाता है।
उसके बाद वहां से पंप तक तेल को पहुंचाने का खर्च, केंद्र और राज्य के टैक्सों के
साथ-साथ डीलर का कमीशन भी जोड़ा जाता है। इस सब का दाम ग्राहक से वसूला जाता है।
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दिल्ली में पेट्रोल के दाम का ब्रेक-अप
बेस प्राइस- 56.32 रुपये
भाड़ा
इत्यादि- 0.2 रुपये
एक्साइज
ड्यूटी (केंद्र का कर) 27.9 रुपये
डीलर
कमीशन औसतन – 3.86 रुपये
वैट 17.13
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तेल के कर में राज्य और केन्द्र
की ऐसे तय होती है हिस्सेदारी
अलग-अलग शहरों में अलग-अलग
टैक्स की वजह से पेट्रोल डीजल के दाम में फर्क होता है। संविधान के अंतर्गत पेट्रोल-डीजल
और नेचुलर गैस केद्र का विषय है। यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह तय करे
कि कच्चा तेल किस देश से, किस दाम
पर खरीदा जाए। केंद्र सरकार इसके एवज में पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क
लगाती है। साथ ही अलग-अलग जरूरतों के लिए सेस भी उसी उत्पाद शुल्क के ऊपर अतिरिक्त
लगाया जाता है। राज्य सरकारें उसपर वैट लगाती हैं। राज्यों का तर्क है कि उसके
विकास के कार्यों के लिए टैक्स वसूली के लिए सबसे ज्यादा बिकने वाला उत्पादों में
से एक होता है। ऐसे में इस पर वैट लगाने का अधिकर उन्हें दिया ही जाए। इसी लिए इसे
जीएसटी से बाहर रखा गया है। राज्य और केंद्र दोनों सरकारें अपनी जरूरत के हिसाब से
उसपर टैक्स लगाती रहती हैं। मौजूदा समय में तय फॉर्मूले के हिसाब से बेसिक एक्साइज
ड्यूटी का 42 फीसदी हिस्सा भी केंद्र सरकार की तरफ से राज्यों को दिया जाता है।
आंकलन के मुताबिक देश में 86 फीसदी कच्चा तेल और 56 फीसदी नेचुरल गैस का आयात होता
है।
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राज्य क्यों नहीं घटाते वैट
-राज्यों की कमाई का बड़ा हिस्सा
पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले वैट से आता है
-वैट
घटाएंगे तो राज्य के खर्च के लिए आमदनी घट जाएगी
- वैट
घटाएंगे तो केंद्र पर पैसे के लिए निर्भरता बढ़ जाएगी या फिर उधार लेकर खर्च चलाना
पड़ेगा जो आर्थिक तौर पर नुकसान दायक होगा
- राज्यों
को लगता है कि वैट घटा देंगे तो कमाई का बड़ा हिस्सा केंद्रे के ही खाते में चला
जाएगा और उनके हाथ खाली रह जाएंगे
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चुनावी राज्यों में तेल का भाव
गुजरात (गांधीनगर) 105.29 रुपये प्रति लीटर
हिमाचल
प्रदेश (105.83 रुपये प्रति लीट)
कर्नाटक
बंगलुरू (111.29 रुपये प्रति लीटर)
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राज्यों की कुल वैट कमाई
राज्य वित्त वर्ष 2020-21
वित्त
वर्ष 2021-22
बिहार 5,854
4,943
दिल्ली 2,653
2,713
हरियाणा 7,923
7,951
उत्तर
प्रदेश 21,956 18,998
उत्तराखंड
1,524 1,417
झारखंड 3,619
3,240
राजस्थान
15,119 13,372
महाराष्ट्र
25,430 24,886
पश्चिम
बंगाल 7,916 6,923
(वित्त वर्ष 2021-22
के
दिसंबर महीने तक के आकंड़े, राशि
हजार करोड़ रुपये में)
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पेट्रोल पर विभिन्न राज्यों में
बिक्री एवं अन्य कर
राज्य कर (फीसदी में)
दिल्ली 19.4
झारखंड 22
बिहार 23.58
उत्तराखंड
16.97
उत्तर
प्रदेश 19.36
मध्य
प्रदेश 29 (2.5 रुपये प्रति लीटर वैट अतिरिक्त)
हिमाचल
प्रदेश 17.50
हरियाणा 18.20
राजस्थान
31.04
गुजरात 13.70
महाराष्ट्र
26 (10 रुपये प्रति लीटर अतिरिक्त)
चंडीगढ़ 15.24
जम्मू
एवं कश्मीर 24
पंजाब 13.77(10
फीसदी
अतिरिक्त कर)
गोवा 20
दादरा-नागर
हवेली 12.75
कर्नाटक 25.92
केरल 30.08
लदाख 15
उड़ीसा 28
तेलंगाना
35.20
आन्ध्र
प्रदेश 31
सिक्किम 20
पश्चिम
बंगाल 25
छत्तीसगढ़
24
अरुणाचल
प्रदेश 14.40
मणिपुर 25
त्रिपुरा
17.50
मेघालय 13.50
तमिलनाडु
13
पूद्दूचेरी
14.55
अंडमान-निकोबार
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