भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें दो दिन से लगातार बढ़ रही हैं। दो दिनों में इनके मूल्यों में 1.60 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसके बावजूद तेल कंपनियों को अब भी प्रति लीटर 17 से 18 रुपये प्रति लीटर का घाटा हो रहा है।
ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इन कीमतों में वृद्धि आने वाले दिनों में भी लगातार जारी रह सकती है। रूस से सस्ते तेल के आयात की संभावनाएं भी न के बराबर ही हैं। लिहाजा भारतीय उपभोक्ताओं को तेल की मार लगातार झेलनी पड़ सकती है।
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डीजल के दाम बढ़ने से बिजली उत्पादक संयंत्रों पर भी भारी आर्थिक दबाव आएगा और इस कारण बिजली कीमतों में भी बढ़ोतरी होने की आशंका जताई जा रही है। वर्तमान में लगभग 80 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन डीजल आधारित संयंत्रों के माध्यम से किया जाता है।
150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं दाम
यदि रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध रूकता भी है (जिसकी संभावनाएं फिलहाल नजर नहीं आ रही हैं) तो भी तेल की कीमतों में कमी लाना बेहद मुश्किल होगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की वर्तमान कीमत लगभग 113 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी हैं। युद्ध के कारण यह लगातार बढ़ रहा है और इसके 150 डॉलर प्रति बैरल तक भी पहुंच जाने की आशंका जताई जा रही है। लेकिन यदि युद्ध रुकता भी है तो भी यह मूल्य 80 डॉलर से कम पर लाना लगभग नामुमकिन होगा। यानी उपभोक्ताओं को मानसिक तौर पर इस बात के लिए तैयार हो जाना चाहिए कि अब उन्हें वर्तमान कीमत से कम पर तेल मिल पाना बेहद मुश्किल है।
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ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि कच्चे तेल की कीमतों में एक डॉलर की वृद्धि होने पर अन्य खर्चों को पूरा करने के बाद प्रति लीटर पेट्रोल-डीजल में लगभग 50 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो जाती है। यदि क्रूड ऑयल की कीमतें लगातार बढ़ती रहीं, तो पेट्रोल कीमतों में वृद्धि रोककर रख पाना कंपनियों के लिए बेहद मुश्किल होगा। सरकार की हिदायत के बाद भी कंपनियां तेल कीमतों में बढ़ोतरी को मजबूर हुई हैं और कीमतें लगातार बढ़ सकती हैं।
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थोक तेल खरीदारों के लिए तेल कंपनियों ने प्रति लीटर 25 रुपये तक की बढ़ोतरी करने की इजाजत देकर सरकार ने तेल कंपनियों का घाटा कुछ हद तक कम करने का रास्ता अपनाया है, लेकिन यह बढ़ोतरी घाटे को कम करने में बहुत ज्यादा सहायक नहीं हो सकती। इसका बड़ा कारण है कि रक्षा क्षेत्र, रेलवे, बड़ी बस कंपनियां, ऊर्जा उत्पादक केंद्रों के माध्यम से कुल तेल खपत का लगभग 20 से 25 फीसदी तेल ही उपयोग में लाया जाता है, इसलिए 75 फीसदी तेल का घाटा केवल 25 फीसदी पर लादकर घाटा ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता।
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तेल कीमतों में बढ़ोतरी से आम उपभोक्ताओं को भारी नुकसान होना तय है। उनकी जेब पर खपत के अनुसार प्रति माह दो से चार हजार रुपये तक का असर पड़ सकता है, जो उनके घर का बजट बिगाड़ सकता है। इससे सरकारों की हालत भी खराब हो सकती है क्योंकि उन्हें लोगों को बिजली उपलब्ध कराना भारी पड़ सकता है। अभी लगभग 80 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन डीजल आधारित संयंत्रों के माध्यम से किया जाता है। लेकिन डीजल की कीमतों में वृद्धि होने से बिजली की दरों में भी बढ़ोतरी हो सकती है, जिसे वहन करना सरकार के लिए मुश्किल होगा।
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रूस से दोस्ती नहीं आएगी काम
मीडिया में इस बात की खूब चर्चा है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रूस भारत को सस्ता तेल उपलब्ध कराएगा। इससे भारत की तेल जरूरतें पूरी हो सकेंगी और तेल मूल्यों में वृद्धि नहीं होगी। लेकिन ऊर्जा विशेषज्ञों की राय है कि यह केवल एक कल्पना है और हमें इस गलतफहमी से जल्द से जल्द बाहर आ जाना चाहिए। सबसे पहली बात यह है कि भारत रूस से बेहद कम मात्रा में तेल खरीदता रहा है। भारत अपनी कुल तेल जरूरतों का लगभग एक से दो फीसदी तेल ही रूस से खरीदता रहा है।
क्रूड ऑयल का आयात अन्य सामान्य वस्तुओं की तरह नहीं है, जिसे कभी भी अचानक बढ़ाया जा सकता है। इसके परिवहन की तकनीकी, स्टोरेज की तकनीकी और रिफाइनिंग की विशिष्टता के कारण इसे लाना आसान नहीं होता, लिहाजा युद्धग्रस्त रूस से सस्ता तेल आयात करना फिलहाल संभव नहीं होगा।
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