यूपी की सियासत में पुरानी कहावत फिर ताजा हो गई है. कहते हैं सियासत में कुछ भी स्थायी नहीं होता है. ऐसा ही कुछ यूपी चुनाव में देखने को मिल रहा है. चुनावी मैदान में कहीं गुरु-शिष्य एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं, तो कहीं गलबहियां करने वाले दोस्तों में दुश्मनी हो गई है. कभी बेहद करीबी रहे प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में इस वक्त एक-दूसरे को घटनाओं का जिक्र कर ललकारते हैं. मतदाताओं के बीच एक-दूसरे की कारगुजारियां गिनाते हैं. कहीं दोस्त पर धोखा देने का आरोप लगा रहे हैं, तो कहीं खुद के साथ हुई नाइंसाफी गिना रहे हैं. इस चुनावी जंग में कई लोगों के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं.
कभी थे जिगरी दोस्त, चुनावी मैदान में एक-दूसरे के
खिलाफ
फिरोजाबाद
की सदर सीट से सपा के टिकट पर मैदान में उतरे सैफुर्रहमान और पूर्व विधायक अजीम
भाई की दोस्ती अब दुश्मनी में बदल गई है. अजीम की पत्नी साजिया हसन बसपा के टिकट
पर मैदान में हैं. सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और पूर्व विधायक अजीम भाई अब पत्नी के
लिए वोट मांग रहे हैं. अभी तक दोनों जिगरी दोस्त साथ-साथ सियासत में सक्रिय थे.
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वहीं, लखनऊ की मोहनलालगंज सीट पर भी
रोचक मुकाबला हो गया है. यहां से 2017 में सपा का खाता खोलने वाले
विधायक अंबरीश पुष्कर ने पहले साइकिल चिह्न पर नामांकन किया. अगले ही दिन पुष्कर
का टिकट काटकर पूर्व सांसद सुशीला सरोज को मैदान में उतार दिया गया. कभी बीएस-4 के सक्रिय सदस्य रहे अंबरीश
पुष्कर को राजनीति में लाने का श्रेय सुशीला सरोज को ही जाता है.
गुरू के खिलाफ शिष्य
कन्नौज
जिले की तिर्वा विधानसभा सीट पर भाजपा ने विधायक कैलाश राजपूत को मैदान में उतारा
है. इनके सामने बसपा से अजय वर्मा ने ताल ठोक दी है. वर्ष 2007 में कैलाश और अजय साथ-साथ बसपा
में थे. अजय वर्मा ब्लॉक प्रमुख भी रहे, लेकिन विधानसभा चुनाव में गुरू के
खिलाफ शिष्य ने ताल ठोक दी है.
सपा के कैंट सीट से पूजा यादव और उत्तरी से अशफाक अहमद ने किया नामांकन
सियासी दुश्मनी में बदली दोस्ती
बांदा जिले
के बबेरू विधानसभा क्षेत्र में सपा ने विशंभर यादव को उतारा है. पिछली बार बसपा से
चुनाव लड़ने वाली किरन यादव कुछ समय पहले सपा में शामिल हुईं. सपा ने टिकट नहीं
दिया तो वह निर्दलीय मैदान में हैं. दोनों परिवारों के बीच लंबे समय से चल रही
दोस्ती अब सियासी दुश्मनी में बदल गई.
एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में मौसेरे भाई
वहीं, ललितपुर सीट पर सपा ने पूर्व विधायक रमेश
कुशवाहा को मैदान में उतारा है. वहीं, भाजपा ने राम
रतन कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है. दोनों मौसेरे भाई हैं. साथ-साथ राजनीति करने
वाले कुशवाहा बंधु अब आमने-सामने हैं. ऐसे ही कई जगह चुनावी जंग में रास्ते
अलग-अलग हो गए हैं. इन सीटों पर इसलिए भी मुकाबला रोचक है, क्योंकि दोनों एक-दूसरे की चाल को समझते हैं. दोनों
के बीच शह और मात का खेल भी जारी है.
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