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Tuesday, August 12, 2025

वाराणसी में मिली युवती की लाश के मुंह से निकल रहे झाग को देख लोग बोले- हत्या की गई है, पुलिस भी उलझी

वाराणसी: चौबेपुर क्षेत्र के राजवारी हवाई पट्टी के समीप भंदहा कलां गांव के पास एक अज्ञात युवती का शव मिलने से सनसनी फैल गई। आसपास के लोगों ने हत्या की आशंका जताई है। शव को पुरानी हवाई पट्टी के झुरमुट में एक खेत में पड़ा देखा गया था।


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पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर साक्ष्य जुटाए और फॉरेंसिक टीम ने भी जांच की। खबर लिखे जाने तक मृतका की पहचान नहीं हो पाई थी। प्रारंभिक जांच में उसकी उम्र लगभग 22 वर्ष बताई जा रही है। वह नीले रंग का छींट दार सूट पहनी हुई है।

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पुलिस का कहना है कि शव की शिनाख्त और मौत के कारण का पता लगने के बाद ही आगे की कार्रवाई तेज की जाएगी। घटना की सूचना मिलने पर एसीपी सारनाथ विजय प्रताप सिंह भी पहुंचे। प्रभारी निरीक्षक अजीत कुमार वर्मा ने बताया कि युवती के मुंह से झाग निकल रहा था।

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विषाक्त पदार्थ खाने के कारण ऐसा हुआ है। हालांकि, यह कहना अभी मुश्किल है, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही सही पता चल सकेगा। आखिर युवती का शव झुरमुट में हवाई पट्टी पर कैसे मिला? बताया गया है कि टोल टैक्स से बचने के लिए तमाम वाहन कैथी और राजवारी गांव के रास्ते से गुजरते हैं। संभावना है कि कहीं किसी वाहन से युवती को किसी ने फेंक तो नहीं दिया।

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Sunday, August 10, 2025

सारनाथ में सघन वाहन चेकिंग अभियान, नियम तोड़ने वालों पर कसा शिकंजा

वाराणसी: सड़क हादसों पर रोक और यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए रविवार को सारनाथ क्षेत्र में पुलिस ने सघन वाहन चेकिंग अभियान चलाया। कार्रवाई का नेतृत्व ACP सारनाथ विजय प्रताप सिंह ने किया। उनके साथ सारनाथ थाना प्रभारी विवेक त्रिपाठी और चौकी प्रभारी आशापुर अनिल कुमार चंदेल भी मौजूद रहे।



अभियान के दौरान पुलिस ने प्रमुख चौराहों, बाजार क्षेत्र और मुख्य मार्गों पर वाहनों की गहन जांच की। इसी दौरान आटो के बिना परमिट बाईक सावर बिना हेलमेट ट्रिपल सवार,बिना सीट बेल्ट कार चालक, कागजात अधूरे रखने वाले वाहन मालिकों के खिलाफ मौके पर चालान काटा गया। तेज रफ्तार, ट्रिपल राइडिंग और शराब पीकर वाहन चलाने वालों को भी नहीं बख्शा गया।


ACP विजय प्रताप सिंह ने बताया कि इस अभियान का उद्देश्य लोगों को यातायात नियमों के पालन के प्रति जागरूक करना और दुर्घटनाओं की रोकथाम करना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नियम तोड़ने वालों के खिलाफ आगे भी इसी तरह की सख्त कार्रवाई जारी रहेगी।

वाराणसी में अतिक्रमण पर चला बुलडोजर, पुल‍िस लाइन क्षेत्र में सड़क चौड़ीकरण का कार्य शुरू

वाराणसी: कचहरी से संदहा तक सड़क चौड़ीकरण की प्रक्रिया में पुलिस लाइन चौराहा से कचहरी चौराहे तक शेष मकानों को तोड़ने के लिए लोक निर्माण विभाग ने रविवार की सुबह बुलडोजर के साथ कार्रवाई शुरू की।



इस कार्यवाही के दौरान पुलिस की मौजूदगी भी सुनिश्चित की गई थी। एक दिन पहले ही विभाग ने ध्वस्तीकरण की सभी तैयारियां पूरी कर ली थीं। चौड़ीकरण की जद में आने वाले मकान मालिकों को लोक निर्माण विभाग द्वारा सूचना दी गई और मुआवजा भी वितरित किया जा रहा है।


शनिवार को पुलिस लाइन चौराहे पर सड़क चौड़ीकरण की प्रक्रिया से पहले कैंट थाना प्रभारी शिवाकांत मिश्रा ने ड्रोन सर्वेक्षण कराया था। इस सर्वेक्षण के माध्यम से मकानों और अतिक्रमण को चिह्नित किया गया। कई लोगों को स्वयं अतिक्रमण हटाने के लिए कहा गया ताकि उनका अधिक नुकसान न हो। कचहरी से संदहा तक सड़क चौड़ीकरण की प्रक्रिया में 88 प्रतिशत मकानों को लोक निर्माण विभाग ने तोड़ दिया है।


पुलिस लाइन चौराहे से कचहरी चौराहे तक लगभग 300 मीटर की दूरी तक चौड़ीकरण की जद में आने वाले मकानों को तोड़ना अभी बाकी है। कुछ महीने पहले लोक निर्माण विभाग ने पोकलेन और जेसीबी के माध्यम से तोड़ने का प्रयास किया था, लेकिन वहां रहने वाले लोगों ने मोहलत मांगते हुए अंत में तोड़ने की प्रक्रिया को टाल दिया। उन्हें स्वयं तोड़ने के लिए कहा गया, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।


इस कार्रवाई के पीछे का उद्देश्य सड़क चौड़ीकरण के माध्यम से यातायात की सुगमता को बढ़ाना है। स्थानीय निवासियों को इस प्रक्रिया के दौरान कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन विभाग का मानना है कि यह कदम लंबे समय में सभी के लिए फायदेमंद साबित होगा।


लोक निर्माण विभाग द्वारा दी गई सूचना के अनुसार, मुआवजे की प्रक्रिया भी जारी है, जिससे प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता मिल सके। विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए और किसी भी प्रकार की अव्यवस्था से बचा जाए।


इस प्रकार, कचहरी से संदहा तक सड़क चौड़ीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है, जिससे भविष्य में यातायात की स्थिति में सुधार की उम्मीद की जा रही है। विभाग की यह कार्रवाई स्थानीय विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सभी के लिए लाभकारी सिद्ध होगी।

भारत चाइल्ड केयर फाउंडेशन ट्रस्ट के संचालन अधिवक्ता सुरेश प्रताप ने किया बाढ़ क्षेत्र का दौरा, नाव से जाकर बांटा राहत किट

वाराणसी: राजघाट स्थित भारत चाइल्ड केयर फाउंडेशन ट्रस्ट के संचालक अधिवक्ता सुरेश प्रताप व संस्था के सचिव सुभाष दीक्षित ने रविवार को कोनिया एवं राजघाट क्षेत्र के बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में नाव से घर-घर जाकर बाढ़ प्रभावित लोगों से मिलकर उनका हाल जाना तथा उन्हें खाद्यान्न सामग्री बांटी। 


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सुभाष दीक्षित व सुरेश प्रताप ने लोगों को आश्वस्त करते हुए कहा कि आपदा की इस घड़ी में संस्था आपके साथ हैं, आपको हर संभव मदद एवं सहयोग किया जाएगा। लोगों को आश्वस्त करते हुए कहा कि किसी भी प्रकार की परेशानी हो, तो वे बेहिचक उन्हें बताएं। उसका प्राथमिकता पर निस्तारण किया जाएगा। 

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संस्था के सचिव सुभाष दीक्षित ने सभी बाढ़ पीड़ितों को पैकेट में अनाज एवं अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध कराया। प्रत्येक पैकेट में अमूल स्प्रे ड्राई दूध, पानी की बोतलें, ब्रेड,बच्चे के लिए चॉकलेट, मैंगो फ्रूटी, बिस्कुट, नमकीन, चिप्स, बादाम, गुड, भुना चना, लाई, नारियल, पानी की बोतल, चमनप्राश, टमाटर केचप, माचिस मोमबत्ती, मक्खन ब्रेड, साबुन, तेल आदि प्रदान किया गया। 

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भ्रमण के दौरान एक बड़ी नाव के माध्यम से संस्था के लोगों ने दर्जनों बाढ़ से घिरे घर तक जाकर राहत सामग्री वितरित किया।इस दौरान सुभाष दीक्षित, सुरेश प्रताप, अजीत कुमार, गुरुदयाल, जितेंद्र, दीपक, रवि, आर्यन, अंकित उपस्थित  रहे।

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Thursday, August 07, 2025

रोज़गार का संकट, व्यवस्था की साज़िश: पीछे छूटता इंसान

प्रोफेसर राहुल सिंह की कलम से

जिस दौर में मशीनें सोचने लगी हैं, वहाँ इंसान को सोचने तक की फुर्सत नहीं बची। चारों ओर तकनीकी चमत्कारों की चमक है, बटन दबाते ही काम हो जाता है, स्क्रीन पर आंकड़े झिलमिलाते हैं, और हर चीज़ पहले से कहीं तेज़, सटीक और सस्ती हो गई है। लेकिन इसी तेज़ी में इंसान कहीं पीछे छूट गया है। जिन हाथों ने इन मशीनों को गढ़ा, वही आज खाली हैं। जिन आँखों ने इनके सपने देखे, वहीं आज नौकरी के विज्ञापन ढूंढ़ती फिर रही हैं। तकनीक आगे बढ़ी है, इसमें शक नहीं, पर सवाल यह है, क्या समाज भी साथ बढ़ा है? क्या इंसान की ज़रूरतें और सम्मान भी उसी अनुपात में सुरक्षित हुए हैं? या फिर यह विकास केवल गिने-चुने लोगों के लाभ का जरिया बन गया है, जिसमें बाकी लोग बहुसंख्यक भीड़ बनकर खड़े हैं, किसी आने वाली क्रांति की अनसुनी दस्तक के इंतज़ार में।



बेरोज़गारी को अक्सर नीति-निर्माण की असफलता, शिक्षा की कमी या आबादी के दबाव का परिणाम समझा जाता है। लेकिन यह समझ अधूरी है। अगर हम गहराई से देखें तो पता चलता है कि बेरोज़गारी कोई आकस्मिक या अस्थायी स्थिति नहीं है, बल्कि उस सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की अंदरूनी संरचना का हिस्सा है, जिसमें उत्पादन का उद्देश्य मनुष्यता की ज़रूरतें पूरी करना नहीं, बल्कि लाभ कमाना होता है। यह व्यवस्था उत्पादन के साधनों को मुट्ठीभर लोगों के स्वामित्व में रखती है, और काम के अवसरों को भी उन्हीं सीमाओं के भीतर बाँध देती है जहाँ लाभ की संभावना हो।

इस व्यवस्था में काम की कोई कमी नहीं है। समाज में असंख्य ज़रूरतें हैं; बच्चों की देखभाल, बुज़ुर्गों के लिए सहारा, पर्यावरण की रक्षा, शिक्षा का विस्तार, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ। लेकिन ये ज़रूरतें तब तक रोज़गार नहीं बनतीं जब तक उनसे लाभ नहीं कमाया जा सकता। इसलिए यह कहना कि बेरोज़गारी है, अपने आप में भ्रम है। सही बात यह है कि लाभ देने वाले कामों की सीमाएँ तय कर दी गई हैं, और बाकी सभी मानवीय ज़रूरतें गैर-ज़रूरी घोषित कर दी गई हैं क्योंकि वे लाभ नहीं देतीं। इस व्यवस्था के लिए बेरोज़गारी समस्या नहीं, रणनीतिक स्थिति है। ऐसा वर्ग, जो काम के लिए लालायित है, पर काम नहीं पा रहा, वह काम करने वालों के लिए निरंतर दबाव पैदा करता है। यह दबाव काम करने वालों को उनकी मज़दूरी, अधिकार और सम्मान में कटौती स्वीकार करने के लिए विवश करता है। इस तरह एक अदृश्य सेना हमेशा तैयार रखी जाती है जिसे किसी भी समय लगाया या हटाया जा सकता है। इससे एक ओर काम करने वालों में आपसी प्रतिस्पर्धा और असुरक्षा बनी रहती है, और दूसरी ओर पूँजी का नियंत्रण मजबूत होता जाता है।


तकनीक का विकास मानव इतिहास में अद्भुत उपलब्धि है, पर जिस तरह से उसका प्रयोग आज की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में हो रहा है, वह और अधिक बेरोज़गारी को जन्म दे रही है। तकनीकी उन्नति का उद्देश्य मानवीय श्रम को कम करना था ताकि इंसान को अधिक अवकाश और रचनात्मक जीवन मिले, लेकिन मौजूदा ढाँचे में तकनीक का प्रयोग श्रमिकों को हटाने और लाभ बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। उत्पादन की क्षमता तो कई गुना बढ़ी है, लेकिन उसी अनुपात में काम के अवसर नहीं बढ़े, बल्कि घटे हैं। आज के दौर में ऑटोमेशन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। बैंक, रेलवे, कॉल सेंटर, बीमा, परिवहन और यहां तक कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भी मशीनों और कोडों ने इंसानों की जगह ले ली है। इसका नतीजा यह है कि लाखों लोगों को काम से हटाया गया है और जो बचे हैं, उन्हें भी अस्थायी और असुरक्षित स्थितियों में काम करना पड़ रहा है। उन्हें यह डर हमेशा बना रहता है कि कल उनकी जगह कोई और मशीन या कोड ले लेगा। यह डर उन्हें कम वेतन, अधिक घंटे और अधिकारों के बिना काम करने के लिए मजबूर करता है।

तकनीक के इस तरह के प्रयोग से पूँजी का केंद्रीकरण और तेज़ होता है। जिन लोगों के पास तकनीक का स्वामित्व है, वही इसका लाभ उठा रहे हैं। वे हर उस क्षेत्र में तकनीक घुसा रहे हैं जहाँ इंसानी श्रम की जगह ली जा सकती है। इसका मतलब है कि काम का विभाजन अब मशीनों और मनुष्यों के बीच नहीं, बल्कि मशीनों और मुट्ठीभर स्वामियों के बीच हो गया है। आम आदमी केवल उपभोक्ता बन कर रह गया है, उत्पादक नहीं। जो उत्पादक हैं, वे या तो बेरोज़गार हो चुके हैं, या काम करते हुए भी असुरक्षित हैं। यह कहना कि तकनीक रोज़गार ख़त्म कर रही है, केवल आधा सच है। असली बात यह है कि तकनीक का प्रयोग किसके हाथ में है और किस उद्देश्य से किया जा रहा है। अगर समाज का नियंत्रण उत्पादन और तकनीक पर होता, तो यही तकनीक सबके लिए कम काम और बेहतर जीवन का ज़रिया बन सकती थी। उदाहरण के लिए, अगर तकनीक से उत्पादन बढ़ा है तो हर व्यक्ति के काम के घंटे घटाए जा सकते थे। लेकिन हुआ इसका उल्टा। काम कुछ लोगों के हाथ से छिन गया और बाकी लोगों से ज़्यादा काम कराया जाने लगा।


तकनीक को लेकर आज जो डर फैलाया जा रहा है, कि यह काम छीन लेगी, वह केवल पूँजी के पक्ष में काम करता है। यह डर श्रमिकों को संगठित नहीं होने देता, उन्हें अपनी स्थिति सुधारने की मांग करने से रोकता है। वे सोचते हैं कि अगर उन्होंने आवाज़ उठाई तो उनकी जगह मशीन आ जाएगी। इस डर का इस्तेमाल करके न केवल श्रमिकों का शोषण जारी रखा जाता है, बल्कि उनकी एकता भी तोड़ी जाती है। यह बड़ा भ्रम है कि शिक्षा, कौशल, या उद्यमिता से बेरोज़गारी का हल निकलेगा। मौजूदा व्यवस्था में जितना भी आप खुद को कुशल बनाएं, अगर आपका कौशल लाभ देने की स्थिति में नहीं है, तो आप बेरोज़गार ही रहेंगे। और अगर आपका कौशल लाभदायक है, तो भी आपको तब तक ही काम मिलेगा जब तक आपके स्थान पर कोई मशीन या सॉफ्टवेयर नहीं आ जाता। इसीलिए आज लोग तमाम डिग्रियां लेकर भी बेरोज़गार हैं, और लाखों लोग झूठे ऑनलाइन कोर्स करके खुद को ‘अगला स्टीव जॉब्स’ बनने की भ्रांति में जी रहे हैं।

तो समाधान क्या है? समाधान उस सोच में है जो समाज को केवल लाभ के पैमाने पर नहीं देखती। अगर समाज के सभी लोगों को भोजन, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, और गरिमामय जीवन चाहिए, तो यह मानना होगा कि उत्पादन का उद्देश्य लाभ नहीं, ज़रूरत हो। और जब तक उत्पादन का नियंत्रण कुछ लोगों के हाथ में रहेगा, जिनका उद्देश्य केवल मुनाफा है, तब तक तकनीक भी इंसानों के विरुद्ध हथियार बनी रहेगी। यदि उत्पादन का नियंत्रण समाज के हाथ में हो, तो तकनीक से लाभ केवल कुछ लोगों को नहीं, बल्कि पूरे समाज को मिल सकता है। यह संभव है कि सप्ताह में केवल चार दिन काम करके भी सबकी ज़रूरतें पूरी हों। हर इंसान को अपने जीवन में अवकाश, रचनात्मकता और आत्म-सम्मान मिले। तकनीक को स्कूलों, अस्पतालों, कृषि और पर्यावरण सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में लगाया जा सकता है; पर यह तभी होगा जब निर्णय समाज ले, पूँजी नहीं।

आज की बेरोज़गारी इसलिए खतरनाक है क्योंकि वह केवल आज के युवाओं की जेब खाली नहीं कर रही, वह आने वाली पीढ़ियों के सपनों को भी मार रही है। वह समाज में स्थायी असुरक्षा और निराशा का वातावरण बना रही है। लोग एक-दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे हैं, क्योंकि काम के अवसर सीमित हैं और हर कोई उसी सीमित टुकड़े के लिए लड़ रहा है। यह स्थिति केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक और नैतिक संकट भी पैदा कर रही है। इसलिए यह सोचना कि सरकार कुछ नई योजनाएँ शुरू कर देगी और बेरोज़गारी खत्म हो जाएगी, केवल भ्रम है। जब तक समाज की संरचना में बदलाव नहीं होगा, जब तक उत्पादन का उद्देश्य लाभ के बजाय मानवीय ज़रूरतें नहीं बनेंगी, तब तक बेरोज़गारी स्थायी सच्चाई बनी रहेगी। तकनीक आती जाएगी, उत्पादन बढ़ता जाएगा, और आम आदमी पीछे छूटता जाएगा। बेरोज़गारी की असली वजह उस व्यवस्था में छिपी है जो इंसानों को काम तभी देती है जब वह उससे लाभ कमा सके। 


वह व्यवस्था जो इंसानी ज़रूरतों को नहीं, बल्कि पूँजी की गति को प्राथमिकता देती है। तकनीक का विकास और बेरोज़गारी, दोनों उसी प्रक्रिया के दो चेहरे हैं। अगर इंसान को तकनीक का साथी बनाना है, न कि शिकार, तो पूरी सामाजिक संरचना को नये सिरे से गढ़ना होगा; ऐसी संरचना, जिसमें कोई भी काम इंसान की गरिमा से नीचे न हो, और कोई भी इंसान काम के अधिकार से वंचित न हो। अगर आप इस बात पर सोचने के लिए तैयार हैं कि तकनीक और बेरोज़गारी एक साथ क्यों बढ़ रहे हैं, तो इसका जवाब बाहर नहीं, इसी व्यवस्था के भीतर छिपा है। और अगर आप उस जवाब को पहचानते हैं, तो फिर बदलाव की दिशा भी साफ़ हो जाती है। उत्पादन, श्रम और तकनीक—all belong to the people—but only when the people reclaim them.

और जब हर कोना चुप हो जाएगा, जब मशीनें थकेंगी नहीं और इंसान थक कर गिर पड़ेगा, तब शायद कोई पूछेगा काम क्या केवल मुनाफे के लिए होता है? तब हवाओं में शायद वो आवाज़ गूंजेगी जो कहेगी नहीं, काम जीवन के लिए होता है। काम गरिमा के लिए होता है। खेतों में फिर बीज बोए जाएँगे, शहरों की मशीनें मनुष्यता की धड़कनों को सुनना सीखेंगी, और हर चेहरा जिसमें आज चिंता है, उसमें उम्मीद उगने लगेगी। उस दिन तकनीक इंसान से आगे नहीं, उसके साथ चलेगी। विकास फिर से परिभाषित होगा—जहाँ गति हो, पर दूसरों को रौंद कर नहीं; जहाँ चमक हो, पर आँखों की रोशनी छीने बिना; जहाँ भविष्य हो, पर अतीत की भूलों से सीखकर।

बलिया में एंटी करप्शन टीम की बड़ी कार्रवाई, मंडी सचिव और सहायक घूस लेते गिरफ्तार

बलिया: आजमगढ़ से धमकी एंटी करप्शन टीम ने बुधवार को मंडी सचिव धर्मेंद्र सिंह यादव तथा मंडी सहायक ओम प्रकाश को मंडी से ही रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। एंटी करप्शन टीम ने थोक सब्जी (आढ़तिया) का लाइसेंस बनवाने के लिए 21 हजार रुपये घूस लेते वक्त दोनों को दबोच लिया।


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बताया जा रहा है कि राजू सिंह ने थोक सब्जी (आढ़तिया) का लाइसेंस बनवाने के लिए आवेदन किया था। मंडी सहायक ने लाइसेंस बनाने के एवज में 26 हजार रुपये का रिश्वत मांगा। 

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इसकी शिकायत राजू सिंह ने एंटी करप्शन टीम से की, जिसे गंभीरता से लेते हुए टीम ने जाल बिछाया और दोनों को गिरफ्तार कर लिया। एंटी करप्शन टीम की कार्रवाई से मंडी में हड़कम्प मच गया। टीम दोनों को गिरफ्तार कर नगर कोतवाली लेकर चली गई।

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विधायक व पूर्व मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी ने नवापुरा पार्क व गली का किया लोकार्पण

वाराणसी: बुधवार को दक्षिणी विधानसभा के लोकप्रिय विधायक व पूर्व मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी ने ईश्वरगंगी वार्ड में नवापुरा मोहल्ले में पार्क एवं दारानगर में गली का लोकार्पण किया। पार्क में लगे दो झूलों से अति उत्साहित बच्चे काफी खुश और प्रफुल्लित नजर आए। 


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पार्क में दो झूला लगने पर बच्चों ने कहा कि अब हम लोग मोबाइल पर गेम में कम ध्यान देंगे और खेलकूद पर ज्यादा ध्यान देंगे। इस अवसर पर विधायक नीलकंठ तिवारी ने बच्चों को चॉकलेट बांटा। संक्षिप्त सभा में डॉक्टर नीलकंठ तिवारी ने कहा कि क्षेत्र को हरा भरा और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के उद्देश्य तथा स्थानीय लोगों के लिए टहलने का स्थान के साथ ही बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले का व्यवस्था कराया गया। प्रारंभ में क्षेत्र के गणमान्य नागरिकों द्वारा लोकप्रिय विधायक जी को अंगवस्त्र प्रदान किया गया। 

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सभा का संचालन भाजपा नेता टिंकू अरोड़ा तथा धन्यवाद ज्ञापन मंडल अध्यक्ष तारकेश्वर गुप्ता बंटी ने दिया। इस दौरान मुख्य रूप से संदीप केशरी, पूर्व पार्षद रविशंकर सिंह, पूर्व पार्षद किशोर सेठ, नलिन नयन मिश्र, संदीप चौरसिया, राकेश सिंह गुड्डू, राहुल मिश्रा, बृजेश जायसवाल, कमलेश शुक्ला, कृष्ण कुमार गुप्ता, सुभाष पासी, मनोज सिंह, आलोक शुक्ला, रत्नेश गुप्ता, डॉ दिनेश सिंह, भरत अग्रहरि, रविकांत तिवारी, प्रमोद रस्तोगी आदि सहित सैकड़ो क्षेत्रीय जनता मौजूद रही।

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